श्रुतः संवर्धन संस्थान

दिगम्बर जैन समाज में नवोदित तीर्थों के निर्माण एवं विकास की ओर तो समाज तथा पूज्य संतों का रुझान है किन्तु दुर्लभ प्राचीन ग्रंथों के संरक्षण, अनुवाद, प्रकाशित करने, उसका प्रचार- प्रसार करने एवं इस कार्य में लगे समाजजनो/ विद्वानों को प्रोत्साहित करने तथा उनके द्वारा किए गए श्रेष्ठ कार्य के लिए सम्मानित करने तथा समाज के सर्वांगीण विकास एवं पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से दिग्भ्रमित युवा पीढ़ी में नैतिकता व् संस्कारों का विकास करने की ओर रुझान अपेक्षाकृत कम है। बिहार प्रान्त के गया नगर में प्रवास के मध्य आचार्य श्री ने ऐसी बहुउद्देशीय संस्था के गठन की परिकल्पना दी जो श्रुत एवं श्रुत के आराधकों का संरक्षण करे, सामाजिक मूल्यों की स्थापना में अपना योगदान दे, युवा पीढ़ी को मार्गदर्शन देकर उनमें संस्कारों का रोपण करे तथा प्राचीन विधाओं का प्रचार प्रसार करें व सुसंस्कृत एवं सुदृढ़ समाज की स्थापना में अपना योगदान दें। सम्प्रति श्रुत संवर्धन संस्थान के गठन के विचार ने मूर्त रूप लिया जिसकी विधिवत स्थापना 1996 में मेरठ में हुई।
वैसे तो पूज्यश्री की प्रेरणा एवं आशीर्वाद से अनेक संस्थाओं का गठन हुआ है लेकिन श्रुत संवर्धन संस्थान गुरुवर की प्रतिनिधि संस्था है जो अन्य सभी संस्थाओं से समन्वय स्थापित करते हुए पूज्य श्री की दृष्टि को आत्मसात कर उनके द्वारा सौंपे गए कार्यों को मूर्त रुप देने हेतु कृतसंकल्प रहती है। संस्थान के माध्यम से संचालित प्रमुख प्रवृत्तियां निम्नवत है:-

  • दुर्लभ एवं अप्राप्य आगम ग्रंथों तथा प्राचीन आचार्य प्रणीत ग्रंथों के प्रकाशन के माध्यम से शुरू सेवा
  • जन उपयोगी एवं सुरुचिपूर्ण सत्साहित्य के माध्यम से जिनवाणी का प्रचार प्रसार
    विभिन्न पुरस्कारों के माध्यम से श्रुत आराधकों को प्रोत्साहन सम्मान एवं संरक्षण
    ज्योतिष एवं अन्य प्राचीन विधाओं के प्रशिक्षण शिविरों के आयोजन से प्राचीन विधाओं का उन्नयन
  • अंतर्राष्ट्रीय अखिल भारतीय तथा विश्वविद्यालय स्तर की संगोष्ठियों/ सेमिनार के माध्यम से जैन धर्म का प्रचार
  • शीतकालीन व ग्र्रीष्मकालीन शिक्षण प्रशिक्षण शिविरों के माध्यम से समाज एवं युवा पीढ़ी में नैतिक मूल्यों का रोपण
  • निर्धन एवं मेधावी छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान करके उनके भविष्य को संवारने का प्रयास
    करियर काउंसलिंग के माध्यम से युवाओं को मार्गदर्शन
  • पूज्य श्री के अन्य सभी कार्यों एवं प्रकल्पों का स्वयं व अन्य सहयोगी संस्थाओं के माध्यम से क्रियान्वयन एवं संयोजन
    सम्प्रति संस्थान के पदाधिकारी एवं सदस्य अन्य सभी सहयोगी संस्थाओं के प्रतिनिधियों से सामंजस्य बनाते हुए परस्पर सहयोग तथा विश्वास एवं पूज्य श्री के प्रति अगाध श्रद्धा एवं आस्था रखते हुए उनके द्वारा दिए गए सभी कार्यों के क्रियान्वन में पूरे प्राण से कृतसंकल्प हैं।
    पुनश्च परम पूज्य राष्ट्रसंत आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज की पावन प्रेरणा स्त्रोत से श्रुत संवर्धन संस्थान, मेरठ द्वारा जिनवाणी के अध्येताओं तथा शोध एवं अनुसंधान कार्य में प्रवृत्त विद्वानों/ संस्थानों को प्रोत्साहन हेतु अनेक पुरस्कार योजनाएं संचालित है। इन पुरस्कार योजनाओं का संयोजन एवं कुशल प्रबंधन वर्ष 1998 से डॉक्टर अनुपम जैन, इंदौर के द्वारा किया जा रहा है। प्रत्येक पुरस्कार के अंतर्गत घोषित क्षेत्र से न केवल जैन साहित्य अपितु इतिहास, पुरातत्व, राजनीति, प्रशासन, विधि, न्याय, शाकाहार, चिकित्सा आदि अनेक क्षेत्रों के विशेषज्ञों को सम्मानित किया जाता है। पूर्व में यह पुरस्कार जैन साहित्य, जैन विद्याओं के शोध तथा जैन पत्रकारिता को ही समर्पित थे किंतु कुछ वर्षों से इन पुरस्कारों के क्षेत्र को अधिक व्यापक करते हुए इनके विषय परिधि में अनेक नवीन विषयों को समाविष्ट किया गया है।

वर्तमान में पुरस्कारों की विषय परिधि निम्नांकित है

  • आचार्य शांति सागर छाणी स्मृति श्रुत संवर्धन पुरस्कार- यह पुरस्कार जैन साहित्य के पारंपरिक अध्येता/ प्रवचन निष्णात/ पुराविद/ इतिहासज्ञ जैन या जैनेतर विद्वान को प्रदान किया जाता है।
  • आचार्य सूर्य सागर स्मृति श्रुत संवर्धन पुरस्कार- यह पुरस्कार राजनीतिक/ न्यायिक/ प्रशासनिक/ विधिक सेवा के माध्यम से समाज सेवा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान हेतु जैन श्रावक को प्रदान किया जाता है।
  • आचार्य विमल सागर ‘भिंड’ स्मृति श्रुत संवर्धन पुरस्कार- यह पुरस्कार पत्रकारिता या प्रबंधन के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान हेतु जैन बंधुओं को प्रदान किया जाता है।
  • आचार्य सुमति सागर स्मृति श्रुत संवर्धन पुरस्कार- यह पुरस्कार जैन विद्याओं के क्षेत्र में मौलिक शोध प्रबंध के सृजन/ समग्र शोध योगदान हेतु जैन/ जैनेतर विद्वान को प्रदान किया जाता है।
  • मुनि वर्धमान स्मृति श्रुत संवर्धन पुरस्कार- यह पुरस्कार शाकाहार/ चिकित्सा, प्रबंधन या स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान हेतु जैन/ जैनेतर बंधुओं को प्रदान किया जाता है।

पांच पुरस्कारों के अंतर्गत शाल, श्रीफल एवं प्रशस्ति पत्र के साथ रुपए 31000 /- की नकद राशि प्रत्येक को प्रदान की जाती थी किंतु 2008 से पुरस्कार राशि में वृद्धि कर इसे 51000/- कर दिया गया है।

सराक पुरुस्कार – सराक क्षेत्र में कार्यरत तथा विशिष्ट योगदान देने वाली संस्थाओं/ महानुभावों को 1999 से यह पुरस्कार प्रदान किया जाता है। पूर्व में सराक पुरस्कार के अंतर्गत राशि रु 25000 /- थी किन्तु 2008 से पुरस्कार राशि में वृद्धि कर इसे 51000 /- कर दिया गया है।
1998 में इन पुरस्कारों के संयोजन का दायित्व डॉ अनुपम जैन को प्रदान किया गया तब से नियमित 5 श्रुत संवर्धन पुरस्कार एवं सराक पुरुस्कार दिए जा रहे हैं।

पूज्य श्री के द्वारा धर्म के वास्तविक स्वरुप की प्रतिष्ठा एवं रूढ़ियों के समापन में सनद सत्य की शाश्वतता के जिज्ञासुओं के लिए अनुराग के प्रति सभी नतमस्तक हैं जिनवाणी के आराधकों को उनके कृतित्व के आधार पर प्रतिवर्ष श्रुत संवर्धन संस्थान के तत्वाधान में सम्मानित करने की योजना का क्रियान्वयन पूज्य श्री के मंगल आशीर्वाद एवं प्रेरणा से संभव हो सका है। संस्थान के उक्त प्रयासों की भूरि-भूरि सराहना करते हुए बिहार के तत्कालीन राज्यपाल महामहिम श्री सुंदर सिंह जी भंडारी ने तिजारा में संपन्न पुरस्कार समर्पण समारोह 09 -11 -98 में मुख्य अतिथि के रुप में कहा था ‘विलुप्त हो रही श्रमण परंपरा के साधकों के प्रज्ञान गुणानुवाद की आवश्यकता को इस तपोनिष्ठ साधक ने पहचान कर तीर्थंकर महावीर की देशना को गौरवमंडित करने के महायज्ञ में जो अपनी समिधा अर्पित की है। वह इस देश के सांस्कृतिक इतिहास का एक अत्यंत महत्वपूर्ण एवं प्रेरक प्रसंग है, जिसके प्रति युगों-युगों तक इस देश की बौद्धिक परंपरा ऋणी रहेगी।”

गुणानुवाद के इस प्रतिष्ठापन के इस प्रक्रम को अधिक सामयिक बनाने व संस्थान द्वारा इन महान संत के संस्कृति के संरक्षण में दिए जा रहे अप्रतिम योगदान के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने के उद्देश्य से आचार्य ज्ञानसागर श्रुत संवर्धन पुरस्कार की स्थापना की गई है। इस पुरस्कार के अंतर्गत साहित्य, संस्कृति तथा समाज के संरक्षण/ विकास में उत्कृष्ट योगदान देने वाले विशिष्ट व्यक्ति /विद्वान/ संस्था को ₹100000 की नकद राशि, रजत प्रशस्ति एवं स्मृति चिन्ह से सम्मानित किया जाता है। श्रमण परंपरा के चतुर्दिक विकास में संपूर्णता में किए गए अवदानों के राष्ट्रीय स्तर पर आकलन के आधार पर उच्च राशि के इस पुरस्कार का आयोजन एक रचनात्मक पहल है। इस श्रंखला में अब तक तीन पुरस्कार अपनी गरिमा और महिमा के साथ समारोहपूर्वक प्रदान किए जा चुके हैं।

प्रथम पुरस्कार – जैन साहित्य प्रकाशन के क्षेत्र में सुविख्यात संस्थान भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली को दिल्ली के ऑडिटोरियम में 6 जनवरी 2002 को समर्पित किया गया द्वितीय पुरस्कार- श्री क्षेत्र धर्मस्थल के धर्माधिकारी राजर्षि डॉ डी वीरेंद्र हेगड़े को श्री एम डी जैन कॉलेज, आगरा के विशाल प्रांगण में 18 दिसंबर 2002 को भव्य समारोह पूर्वक समर्पित किया गया।
तृतीय पुरस्कार- 27 अक्टूबर 2009 को डॉक्टर हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर के श्रीमंत राजमाता विजयाराजे सिंधिया स्वर्ण जयंती सभागृह में परम पूज्य 108 श्री ज्ञानसागर जी महाराज के सानिध्य में लोकसेवक, राजनयिक, सत्यान्वेषी, विधिवेत्ता, भारतीय गणराज्य के ब्रिटेन में पूर्व उच्चायुक्त माननीय डॉक्टर लक्ष्मीमल सिंघवी को ससम्मान प्रदान किया गया।

इस पुरस्कार की राशि बढ़ाकर 500000 कर दी गई है तथा इसे 2014 में योग्य व्यक्ति/ संस्था को समर्पित किया जाना प्रस्तावित है। आचार्य श्री के 50वे जन्म जयंती वर्ष के उपलक्ष में एक विशेष उपाध्याय ज्ञानसागर स्वर्ण जयंती पुरस्कार का प्रवर्तन किया गया जिसके अंतर्गत ₹51000 एवं पत्र तथा शाल, श्रीफल प्रदान किया गया। यह पुरस्कार गणित इतिहास के विशेषज्ञ, अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त युवा विद्वान डॉक्टर अनुपम जैन को 19 अक्टूबर 2008 को कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इंदौर के प्रांगण में भव्य समारोह पूर्वक प्रदान किया गया। पूज्य श्री के प्रशस्त मार्गदर्शन एवं प्रेरणा से श्रुत संवर्धन संस्थान अपने पुनीत उद्देश्यों की प्राप्ति में सदैव अग्रणी रहे ऐसी मंगल भावना है।

6889090