आपका श्रेष्ठ आचरण ही जैनत्व की निशानी है।
श्री दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र क्षेत्रपाल जी मंदिर ललितपुर में धर्मसभा को संबोधित करते हुए *आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराजने अपनी पीयूष वाणी द्वारा कहा कि जर्मनी की महिला ने आचार्य श्री समंतभद्र स्वामी द्वारा विरचित रत्नकरंड श्रावकाचार का अंग्रेजी में अनुवाद कर जो महक बिखेरी है वह बहुत अच्छा प्रयास है| आज अगर हर घर में भारतीय रसोई बनना प्रारंभ हो जाए तो अनेक बीमारियों से छुटकारा पाया जा सकता है| आज अगर हर व्यक्ति श्रावकाचार को अपना लें तो कैंसर जैसी भयानक बीमारियों से छुटकारा पाया जा सकता है| ऐसा आज के डॉक्टर्स का कहना है| खान-पान की शुद्धि बहुत जरूरी है|
यह नर जीवन मिला है हम इसकी दुर्लभता को समझें| जैन कुल में जन्म लेने मात्र से आप जैन नहीं कहलाते| आपकी हर प्रवृति से भी ऐसा लगना चाहिए कि आप जैन हैं| मात्र पूजा-पाठ अभिषेक दान आदि से आप जैन नहीं कहलाते, आप अपने श्रेष्ठ आचरण से जैन कहलाते हैं|दया, करुणा, अहिंसा अगर आपके रोम-रोम में हैं तो आप जैन हैं| आज आपके बच्चे कहां जा रहे हैं, क्या खा रहे हैं, क्या कर रहे हैं इस पर ध्यान दीजिए| अन्यथा यह बच्चे आगे जाकर कहीं आपके सिर दर्द में कारण न बन जाए| जो मोबाइल के फंक्शन आप नहीं जानते वह फंक्शन आपका बच्चा जान रहा है| आपका बच्चा रोता है आप तुरंत उसे मोबाइल पकड़ा देते हैं| फिर आप उसके हाथ से बड़ी मुश्किल से मोबाइल ले पाते हैं| *पहले बच्चे अनेक प्रकार के खिलौनों से खेलते थे और आज कल मैं मोबाइल ही खिलौना लगने लगा है| अब बच्चों का बचपन जवानी नहीं रही वह तो सीधे वृद्धावस्था की ओर बढ़ रहे हैं| 10- 12 साल के वृद्ध आज ज्यादा नजर आ रहे हैं यह सब भौतिक संसाधनों का प्रभाव है|
प्रवचन से पूर्व धर्म सभा का शुभारंभ श्रीमती एकता जी (मुंगावली) के मंगलाचरण से हुआ| पश्चात बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं ने चित्र अनावरण कर दीप प्रज्वलन किया| तदनंतर श्री फूलचंद जी प्रेमी (विद्वान) ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हमने क्षुल्लक गुणसागर जी के रूप में बहुत वर्ष पूर्व महाराज जी के दर्शन किए थे तब से लगातार पूज्यश्री के समीप आते हैं| आचार्य श्री का विद्वानों के प्रति जो वात्सल्य भाव है वह प्रशंसनीय है|पूज्य श्री की प्रेरणा से अनेक ऐसे ग्रंथ प्रकाशित हुए हैं जो अप्रकाशित थे|