अपनी शक्ति को सृजन में लगाएं ध्वंस में नहीं
दिनांक 19-04-2018 श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र क्षेत्रपाल मन्दिर ललितपुर में प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए *आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराजने अपनी पीयूष वाणी द्वारा कहा कि जब मैंने कर्नाटक की ओर विहार किया तब ऐसा नहीं लगा कि मैं नए प्रान्त में जा रहा हूँ। स्वस्ति श्री चारुकीर्ति भट्टारक जी को जैसे ही जानकारी मिली कि महाराज जी कर्नाटक की ओर बढ़ रहे हैं तो उन्होंने आगे से सब स्थानों पर जानकारी दी। मैं जब गया तो भाषा समस्या आई पर मैंने कन्नड़ भाषा सीखना शुरू कर दी और श्रवण बेलगोला पहुँचने तक कुछ वाक्य सीख लिए। कन्नड़वासियों के बीच जब मैं कहता था
णीरु सोसी कुणीयबैकुं
रात्रि उटा माड़बारदू
प्रतिदिन देवदर्शन माड़बेकु
तादि-तदे गणे सेवे माड़बेकु
टीवी यन्नु नोडूता नोडूता तिन्नबारदु।
तब वह बड़े प्रसन्न होते थे अपनी भाषा सुनकर। भाषा से पहचान होती है| अतः सभी भाषाओं को सीखने का पुरुषार्थ करें|
इसी के साथ आचार्य श्री ने कहा कि हर व्यक्ति के पास मन वचन काय यह तीन शक्तियां हैं|आप चाहे तो इन शक्तियों का विकास करें, चाहे तो सदुपयोग करें यह आपके ऊपर निर्भर है| आपके अंदर भी वह क्षमता है जो प्रभु के अंदर है| प्रभु ने उस शक्ति को सृजन में लगाया आप अपनी शक्ति ध्वंस में लगाते हैं|
हर व्यक्ति जो चाहे वह कर सकता है बस उसके अंदर लगन होना चाहिए, उत्साह होना चाहिए| उसे अपनी शक्ति पर विश्वास होना चाहिए| जो भी परिस्थिति आए उस का मुकाबला साहस धैर्य से करें| चाकू वही है यह आपके ऊपर निर्भर करता है कि आप उसका सही उपयोग करें| अग्नि का आप चाहे तो उपयोग कर सकते हैं चाहे तो दुरुपयोग कर सकते हैं| *अपनी शक्ति को घृणा, ईर्ष्या में न लगाएं अपनी शक्ति प्रेम, वात्सल्य, करुणा, दया में लगाएं|हर क्षेत्र में आप जो चाहे वह कर सकते हैं| बस अपनी शक्ति को पहचाने| आत्मविश्वास जगाये कि हम सब कुछ कर सकते हैं|