समन्तभद्र स्वामी
स्वामी समन्तभद्र का जन्म दक्षिण भारत के फणिमण्डल देश के उरगपुर नगर में हुआ था। यह कावेरी नदी के तट पर एक प्रसिद्ध नगर था और इसे पुरानी त्रिचनापोली के नाम से जानते हैं।
समन्तभद्राचार्य, आचार्य उमास्वामी के बाद और आचार्य पूज्यपाद स्वामी के पहले विक्रम की दूसरी या तीसरी शताब्दी में हुए हैं। आचार्य श्री समन्तभद्र के द्वारा रचित उपलब्ध ग्रंथों के नाम स्वयंभूस्तोत्र, आप्तमीमांसा ( देवागम ), युक्त्यनुशासन, स्तुति विद्या, जिनशतक रत्नकरण्ड श्रावकाचार आदि हैं।
आचार्य श्री को भस्मक रोग हुआ था और आचार्य श्री ने गुरु के समक्ष सल्लेखना ग्रहण करने की याचना की। गुरुदेव ने काफी आयु शेष जान आचार्य श्री समन्तभद्र को जिस वेष में, जैसे भी हो सके, रोग शान्ति का उपाय करने व रोग समाप्त होने पर प्रायश्चित पूर्वक फिर जिनदीक्षा लेने का आदेश दिया।
काशी के राजा शिवकोटि के शिवालय में चढ़ने वाली नैवेद्य सामग्री से आचार्य श्री समन्तभद्र ने अपनी भस्मक व्याधि को शान्त किया और उस समय भगवान् चन्द्रप्रभु की स्तुति पढ़ते समय जिनबिम्ब प्रकट हुआ था। और इस प्रकार स्वयंभू स्तोत्र की रचना हुई|