रथ यात्रा एवं महामस्तकाभिषेक महोत्सव
दिनांक 22 नवंबर 2019 पहाड़ी जिला भरतपुर राजस्थान में प्रशांतमूर्ति आचार्य 108 श्री शांतिसागर जी महाराज छाणी के समाधि हीरक महोत्सव के उपलक्ष में सन 2000 में नवनिर्मित मानस्तंभ की प्रतिष्ठा आचार्य श्री ज्ञानसागरजी के पावन सानिध्य में हुई थी उन्हीं के पावन सानिध्य में 19 वर्षों के बाद प्रथम बार महामस्तकाभिषेक का आयोजन द्विदिवसीय हुआ।
प्रथम दिन दिनांक 21 नवंबर 2019 को प्रातःकाल देवाज्ञा, गुरु आज्ञा के पश्चात ध्वजारोहण प्रतिष्ठाचार्य पंडित श्री जयकुमार जी निशांत, पंडित श्री ऋषभ शास्त्री के निर्देशन में हुआ। दोपहर में किसान एवं गौ रक्षा सम्मेलन हुआ। शाम को गुरु भक्ति, आरती के बाद मनोज एंड शर्मा पार्टी द्वारा मैना सुंदरी एवं त्रिया चरित्र की नृत्य नाटिका प्रस्तुत की गई। दिनांक 22 नवंबर 2019 को विशाल रथ यात्रा श्री चंद्रप्रभ दिगंबर जैन मंदिर से प्रारंभ होकर रामलीला स्टेज, मेन रोड से होते हुए पांडाल में आई। ज्ञान प्रभावना पाठशाला के बच्चे झंडे लेकर चल रहे थे, ज्ञान महिला मंडल की महिलाएं मंगल कलश लेकर चल रही थी, जैनाजैन सभी उस रथ यात्रा में जय-जयकार के नारे लगाते हुए चल रहे थे। विशाल जुलूस धर्म सभा रूप में परिवर्तित हुई; मंच संचालन डॉक्टर श्री कमलेश जी ने किया। सर्वप्रथम मनोज एंड पार्टी दिल्ली द्वारा व्यसन मुक्ति पर नाटिका प्रस्तुत की गई।
तदनंतर मान स्तंभ का प्रथम अभिषेक करने वालों का नाम चयन किया गया श्री प्रमोद कुमार पहाड़ी, श्री भगवती देवी सुपुत्र श्री ब्रजमोहन जी, श्रीमती लीला जी, शैलेंद्र जैन, श्रीमती हेमा जी, अमित जी, श्री महावीर प्रसाद डींग, श्री नरेश चंद्र जी, श्री प्रकाश चंद्र, प्रवीण जी पहाड़ी, श्री शिखरचंद्र जी पहाड़ी, श्रीमती नीता जैन ने अपने धन का सदुपयोग कर जीवन को धन्य किया। पाद प्रक्षालन – ब्र. श्री शांति स्वरूप बोलखेड़ा, श्रीमती मिकलेश जी ने किया। शास्त्र भेंट- श्री प्रदीप जी पुन्हाना, त्रिशला जैन ने किए। साथ ही 12 महिलाओं ने भी शास्त्र भेंट किए। पूज्य श्री की महा अर्चना भक्ति भाव के साथ श्रद्धालुओं ने की।
रथ के सारथी बनने का सौभाग्य श्री नेमचंद्र जी तिजारा, खवास बनने का सौभाग्य श्री ठंडीराम शिखरचंद्र जी को प्राप्त हुआ। प्रेमचंद्र जी पहाड़ी- प्रथम चवर दुराने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। चेतराम जी ने द्वितीय चवर दुराने का सौभाग्य प्राप्त किया। चित्र अनावरण श्री अनिल कुमार, सुनील जैन रामगढ़ ने किया। दीप प्रज्वलन श्री ज्ञान चंद्र, राकेश जी फिरोजपुर ने किया। महाआरती वर्तिका जैन गुडगांव ने की।
पश्चात पूज्यश्री ने अपनी पीयूष वाणी द्वारा कहा कि श्रावकों के षट आवश्यक कर्तव्यों के मध्य देव पूजा प्रथम आवश्यक कर्तव्य है। प्रभु की पूजन के पूर्व श्रीजी का अभिषेक आप करते हैं, 19 वर्षों के बाद आप सभी को प्रथम बार मान स्तंभ का महामस्तकाभिषेक करने का अवसर मिल रहा है। श्रीजी का अभिषेक अष्टकर्मों को नष्ट करने में माध्यम बनता है, अनेक रोगों को नष्ट करने में माध्यम बनता है। धार्मिक स्थलों में जाकर आप जो भी अनुष्ठान करते हैं, वह मात्र पुण्यबंध का ही कारण नहीं है, वह अनुष्ठान घरों को स्वर्ग बनाने में माध्यम बनते हैं।
प्रभु की भक्ति से आप जो चाहे, जैसा चाहे, सब कुछ प्राप्त कर सकते हैं, सीता सती के अंदर प्रभु के प्रति अगाध भक्ति थी, तभी तो वह अग्नि परीक्षा में सफल हुई।
आज के डॉक्टर भी कह रहे हैं कि प्रभु की आराधना करने वाले, दया, करुणा, प्रेम, वात्सल्य, परोपकार करने वाले अधिकांश स्वस्थ रहते हैं अन्याय, अनीति, अत्याचार करने वालों की अपेक्षा। विंग कमांडर का प्रसंग ध्यान दिलाते हुए आचार्य श्री ने कहा कि उनके पिता जी ने कहा था कि मैं प्रभु पार्श्वनाथ की पूजन करता हूं, मुझे विश्वास है कि मेरा बेटा अवश्य आएगा, यह है प्रभु-भक्ति का फल। परमात्मा की भक्ति में आप सभी समय दें। 19 साल पूर्व मंदिर की स्थिति देखकर लगा कि नया मंदिर जरूरी है। समाज को प्रेरणा दी और कुछ ही समय में भव्य मंदिर का निर्माण हुआ। पंचकल्याणक प्रतिष्ठा हुई। 19 वर्षों के बाद भी में वही श्रद्धा-आस्था जैनेतर समाज के अंदर देख रहा हूं। मैं तो सोच रहा था सभी विस्मृत हो गए होंगे, पर यहां पर आकर आप सभी की श्रद्धा-आस्था देखकर लगा कि आप सभी इसी तरह आगे भी श्रद्धावान रहें। प्रवचन के पश्चात मानस्तंभ का महामस्तकाभिषेक अनेक श्रद्धालुओं ने किया।