नर जीवन मिला है प्रभु भजन के लिए
दिनांक 17 4 2018 श्री दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र क्षेत्रपाल जी मंदिर ललितपुर में आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज ने अपनी पियूष वाणी द्वारा कहा की आज दिखावे की भावना, प्रदर्शन की भावना बढ़ती जा रही है लोग मुझे अच्छा कहें मेरी स्थिति को अच्छा समझें। उस हेतु स्वयं की स्तिथि ना होते हुए भी वह सब भौतिक संसाधन रखता है जिससे व्यक्ति यह कहे कि यह बहुत बड़ा व्यक्ति है। *प्रदर्शन की भावना से हटकर आत्मदर्शन की भावना अपने अंदर लायें।*
इसी के साथ आचार्य श्री ने कहा कि हर व्यक्ति को आज छोटे-छोटे नियमों के द्वारा त्याग की तरफ कदम बढ़ाना चाहिए। आज दिन भर में 5-8-10 हरी सब्जी से ज्यादा नहीं खाएंगे, 5 बार से अधिक पानी नहीं पिएंगे, कपड़ों की, धन की, दुकान-मकान आदि की मर्यादा कर लेनी चाहिए। जिस समय आप धर्मसभा में आ कर बैठते हैं उस समय नियम ले लेना चाहिए कि जब तक धर्मसभा में, मंदिर में बैठे हैं तब तक अन्य जल का त्याग है अगर ऐसे समय आयु का बंध हो जाए या मरण हो जाए तो दुर्गति के बंध से बच जाओगे।
नर जीवन मिला है प्रभु भजन के लिए, स्वाध्याय के लिए, बुराइयों की विदाई के लिए, अच्छाइयों से अपने आप को अलंकृत करने के लिए, इस जीवन को पाकर जो अपना समय विषय-भोगों की पूर्ति में, घृणा, इर्षा, दुर्भावनाओं में निकाल देते हैं वह अपने जीवन को सफल नहीं कर पाते हैं।
आज व्यक्ति ने अपनी सोच को धूमिल कर लिया है दूसरों के विषय में बुरा सोचना, दूसरों की उन्नति को देखकर जलना, दूसरों को चैन से देखकर बेचैन होना दूसरों की कार को देखकर अपने आप को बेकार समझना। यह धर्म नहीं है धर्म आपसे कहता है कि दूसरों की उन्नति देख कर हर्षित होओ। किसी से घृणा मत करो किसी से ईर्ष्या, कलह क्लेश मत करो।
दूसरों की चुगली करने वाला जहां स्वयं कर्म बंद करता है वहीं दूसरे को भी दुखी कर देता है। अतः चुगलखोरी की आदत की अपने अंदर से विदाई कर देनी चाहिए।