मरने की कला सिखाता है भारतीय दर्शन
पूरे विश्व के दर्शन जहां जीने की कला सिखाने की बात करते हैं वहीं भारतीय दर्शन और उसमें भी विशेष जैन दर्शन मृत्यु को महोत्सव की तरह चयन करने की कला सिखाता है। यह उद्गार प्रमुख जैन सन्त आचार्य श्री ज्ञानसागर जी ने आज वरिष्ठ जैन विद्वान प्राचार्य नरेन्द्र प्रकाश जी जैन फिरोजाबद के निधन पर आयोजित श्रद्धांजलि सभा में व्यक्त कीये , उन्होंने प्रमुख गांधीवादी विनोबा भावे का उदाहारण देते हुये बताया कि अन्त समय जान विनोबा भावे ने सभी राग द्वेष त्याग, अन्न जल का त्याग करते हुये समाधी पूर्वक मरण प्राप्त कीया था।प्राचार्य नरेन्द्र प्रकाश जी को जिनवाणी का लाल बताते हुये उन्होने कहा कि उन्होने भी अन्त समय जान सभी तरह का आहार पानी का त्याग करते हुये मुनि मुद्रा से सम्बोधन सुनते हुये अपनी देह को त्यागा वह भी समाधी से कम नहीं। ज्ञात रहे कि प्राचार्य जी को अन्तिम समय में स्वयं आचार्य श्री ज्ञान सागर जी महाराज से सम्बोधन का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।
इस अवसर पर नगर के बडी संख्या में लोग उपस्थित थे, जिनमें से प.सुमेर चन्द भगत, प.वीरेन्द्र शास्त्री, नगर के श्रेष्ठी श्री चन्दाबाबू जैन, भोलानाथ जैन, प्रदीप जैन PNC, जितेन्द्र जैन,सतेन्द्र जैन पथिक, जगदीश प्रसाद जैन सम्पादक, मदन लाल बैनाडा , अशोक जैन एडवोकेट, राज कुमार जैन राजू, डा.कल्पना जैन, संगीता जैन, फकीर चन्द, शान्तिलाल जी जैन आदि नै प्राचार्य जी को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।