राष्ट्रीय जैन युवा सम्मेलन में हजारों युवक आए
दिनांक 26 जनवरी 2020 स्वस्तिधाम, जहाजपुर (जिला भीलवाड़ा) राजस्थान की पावन धरा पर सराकोद्धारक, नवचेतना प्रदायक आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज, आचार्य श्री विनीतसागर जी महाराज ससंघ आर्यिका 105 श्री लक्ष्मीभूषण माताजी, श्री स्वस्तिभूषण माताजी आदि के पावन सानिध्य में ‘राष्ट्रीय जैन युवा सम्मेलन’ का शुभारंभ 26 जनवरी की पावन बेला में 21 ध्वजारोहण से हुआ। वह दृश्य अद्भुत था। एक साथ 21 स्थानों पर ध्वजारोहण श्रद्धालुओं ने किया। राष्ट्रीय वंदना के साथ जैन ध्वज गीत प्रस्तुत किया गया। पश्चात आचार्य संघ, आर्यिका संघ मंचासीन हुए। नृत्य प्रस्तुति के साथ सभा का शुभारंभ हुआ। कृतिका जैन के द्वारा उन सभी युवक-युवतियों को सम्मानित किया गया जो उच्च पदों पर रहकर सामाजिक सेवा कर रहे हैं।
श्री निशांत जी जैन (आई.एस.) ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हम सभी जैन हैं तो आइए हम अपने अंदर झांककर देखें कि क्या हम जैन हैं? मात्र जैन कुल में जन्म लेने से हम जैन नहीं कहलाते जैनत्व के संस्कारों से हमें संस्कारित होना होगा। हमें पाठशालाओ में प्रथम भाग छहढाला आदि अवश्य पढ़ना चाहिए। हमने भी बचपन में इन धार्मिक पुस्तकों को पढ़ा था। आचार्य श्री, आर्यिका संघ के द्वारा जो आज हम सभी को संस्कार मिलेंगे, वह हम सभी के उत्थान में माध्यम बनेंगे।
श्री सोमिष जी दलाल ने सभी युवकों को संबोधित करते हुए कहा कि आज अधिकांश लोगों की सोच बन गई है कि हमें बिजनेस नहीं, सर्विस करना है। आज के बच्चे बचपन से ही कहते हैं हम आगे जाकर सीए बनेंगे, डॉक्टर बनेंगे, इंजीनियर बनेंगे, वकील बनेंगे पर बहुत कम बच्चे ऐसे होते हैं कि जो कहते हैं कि व्यापार करेंगे। जो भी कार्य आप करें लगन से उत्साह से करो। अपनी ताकत को पहचानो, कमजोरी को दूर करो। लोग क्या कहेंगे, यह काम मुझसे नहीं होगा, मेरा मूड ठीक नहीं है, मेरे पास समय नहीं है, इन बिंदुओं से व्यक्ति कमजोर हो जाता है, हम तो अच्छा काम करें। जो लोग ताकत से काम करते हैं, वह सफलता हासिल करते हैं। परिवार आगे बढ़े, समुदाय आगे बढ़े, राष्ट्र आगे बढ़े, ऐसी भावना सभी की होना चाहिए । पंचकल्याणक का विवरण जिस न्यूज़पेपर में है वह जयपुर वालों ने आचार्य श्री को दिया। मंच संचालन श्री हंसमुख गांधी जी इंदौर, श्री राजेंद्र जी महावीर सनावद आदि ने किया।
दोपहर में पुनः द्वितीय सत्र का शुभारंभ हुआ। जहाजपुर के छात्र-छात्राओं ने 26 जनवरी के उपलक्ष में देशभक्ति पर नृत्य प्रस्तुति की। मुख्य वक्ता एस.पी. भारिल जयपुर को सम्मानित किया गया। स्वागत भाषण श्री विनोद जी जैन कोटा ने किया।
ब्र. अनीता दीदी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आप अगर अपने जीवन को खूबसूरत बनाना चाहते हैं तो अच्छे कार्य करना होगा, आपके अंदर वह प्रतिभा है कि आप अपने जीवन में फूलों की सुवास बिखेर सकते हैं। आप अपना जीवन महान बना सकते हैं। जैन कौन है? कुछ पंक्तियो द्वारा कहा हर जान को जो एकसा समझे वह जैन है, इस जिंदगी के राज को समझे वह जैन है। आप स्वयं मंदिर जाए, बच्चों को मंदिर ले जाएं ताकि श्रमण संस्कृति का दीप जलता रहे। डॉक्टर नलिन के. शास्त्री ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि मेरे जीवन का पुण्य प्रसंग है कि आज स्वस्तिधाम परिसर में श्री मुनिसुव्रतनाथ प्रभु के दर्शन का अवसर मिला। आज का यह महाउत्सव हौसलों की उड़ान की प्रेरणा दे रहा है, जीवन में आप जैसा चाहे वैसा कर सकते हैं, आचार्य श्री का एक ही उद्देश्य है कि आज की युवा पीढ़ी व्यसन मुक्त रहे। जीवन के हर क्षेत्र में सफलता की कहानी लिखें, कुछ कर गुजरने की भावनाएं अपने अंदर जागृत करें।
श्री भानु कुमार जी (जहाजपुर) ने कहा कि सर्वप्रथम विराट व्यक्तित्व के धनी पूज्य श्री के चरणो में नमन करता हूं, जहां से यह प्रतिमा निकली थी वहीं पर मेरा घर है, 24 अप्रैल 2013 को महावीर जयंती के पावन दिन एक मुसलमान के घर में जब यह प्रतिमा निकली चारों ओर जय जयकार के नारे से सारा परिसर गूंज उठा, प्रशासन के उठाने पर प्रतिमा भारी हो जाती थी, पर हम सभी के द्वारा उठाए जाने पर हल्की हो जाती है। 18 जून सन् 2014 को स्वस्तिधाम परिसर में अस्थाई वेदी पर विराजमान किया गया।
आर्यिका श्री स्वस्तिभूषण माताजी की प्रेरणा से यहां पर जहाजपुर नामक नगर में जहाज के आकार का भव्य मंदिर का निर्माण हो चुका है, जिसका पंचकल्याणक 31 जनवरी से 7 फरवरी तक पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव द्वारा आचार्य संघ, आर्यिका संघ के पावन सानिध्य में होने जा रहा है, यह सौभाग्य आप सभी को बुला रहा है।
तदनंतर आर्यिका 105 श्री स्वस्तिभूषण माताजी ने अपनी वाणी द्वारा कहा कि हम अभी आप लोग यहां का इतिहास सुन रहे थे, पुण्य कथा सुन रहे थे, हम और आप बहुत सौभाग्यशाली हैं जो ऐसी भूगर्भ से प्रगटित प्रतिमा के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त किए। जिस समय प्रभु की प्रतिमा यहां आई थी क्या स्थिति थी, पर आज उस परिसर का परिवर्तित रूप आप सभी देख रहे हैं। परिस्थितियां सभी को मिलती है, पर उन परिस्थितियों में हमें कैसे जीना है इसकी कला आनी चाहिए। युवा शक्ति आज यहां दिखाई दे रही है, आप अपनी शक्ति की अच्छे कार्यों में लगाए, बुरे कार्यों में लगाकर शक्ति का दुरुपयोग ना करें। युवा वर्ग जितना सशक्त होगा वहां का नक्शा उतना ही अच्छा होगा। श्री हसमुख जी गांधी की प्रेरणा से युवकों को दिशा दी तो आसपास के युवकों के अंदर उत्साह जागृत हो रहा है। गांधीजी को प्रेरणा मिली आचार्य श्री की। वह प्रेरणा आज प्रतिफलित हुई, तभी इतने युवक एक साथ बैठकर दिशा प्राप्त कर रहे हैं और अपनी दशा सुधार रहे हैं।
आप अपनी प्रतिमा का उद्घाटन करें, आप जीवन में नए मापदंड स्थापित करें। आचार्य श्री की सोच बहुत व्यापक है, आचार्य श्री ने कितना अच्छा कदम उठाया, बुद्धिजीवी वर्ग को दिशा देते ही आप की दशा सुधर जाएगी। चूंकि आज आप डॉक्टर, इंजीनियर, सीए, एडवोकेट आदि आदि की बात मानते हैं आचार्य श्री की बात बुद्धिजीवी वर्ग मानता है। पश्चात आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज ने अपनी पीयूष वाणी द्वारा कहा कि प्रभु को जो जान लेते हैं वह अपने अंदर में बैठे प्रभु को भी जान लेते हैं। उसका मोह क्षय को प्राप्त हो जाता है। आज राष्ट्रीय पर्व 26 जनवरी का दिन उन सभी शहीदों का स्मरण करा रहा है जिन्होंने देश भक्ति के बल पर अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया था। स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए जहां अनेक देश भक्तों ने अपना बलिदान किया था वही जैन समाज के लोगों ने भी अपना बलिदान किया था। सरकारी पुस्तकों के अनुसार 5000 लोग जेल गए, 20 लोग शहीद हुए।
लक्ष्मीबाई को सभी जानते हैं पर लक्ष्मीबाई को सहयोग करने में अमर चंद्र भाटिया जैन का बहुत बड़ा योगदान रहा, राजस्थान का प्रसंग वीर भामाशाह का सुनाकर सभी को इतिहास बताया। वीर भामाशाह ने 25000 सैनिकों के भोजन की सामग्री 12 वर्षों के लिए जब महाराणा प्रताप को सौंपी तब महाराणा प्रताप कहते हैं कि हमने सुना है कि आपको कई जैन मंदिरों का निर्माण कराना है मुझे नहीं चाहिए आपकी संपत्ति। तब वीर भामाशाह ने कहा कि पहले देश है, देश की सुरक्षा है, अगर देश सुरक्षित है तो बाद में और मंदिर बन जाएंगे। महाराणा प्रताप को प्रसन्नता हुई। युवा सम्मेलन का आयोजन संस्कारों के शंखनाद लिए किया है। नैतिकता के विकास के लिए, व्यसनमुक्ती के संकल्प के लिए, चरित्रनिष्ठ, कर्तव्यनिष्ठ, सत्यनिष्ठ जीवन जीने के लिए किया।
आज चारों ओर आवाज आ रही है जल ही जीवन है। हमारे ऋषि महर्षि बहुत वर्षों से यह शिक्षा दे रहे हैं उनके हाथ में जो कमंडलु रहता है उसमें आय का द्वार बड़ा, खर्च करने का द्वार छोटा है जो शिक्षा देता है कि कम से कम पानी खर्च करो। आज हर व्यक्ति आय के अनुसार व्यय करे तो घरों में सुख-शांति रहती है। महिलाओं ने भी देश की स्वतंत्रता में अपना सहयोग किया है इसी के साथ आचार्य श्री ने कहा कि युवा वह है जो प्रतिकूलता के क्षणों में भी घबराते नहीं हैं, युवा शक्ति जितनी संस्कारित होगी देश, राष्ट्र उतना ही संस्कारित, सभ्य रहेगा। आज सभी युवकों से मेरा कहना है कि आप सभी मां-पिता के प्रति समर्पित रहना अंतिम क्षणों तक, जिन्होंने आपको यहां तक लाकर के खड़ा किया है, उनको कभी भूलना नहीं। जीवन में कभी भी बुराइयों की ओर कदम नहीं बढ़ाना। आप सभी के अंदर बहुत क्षमता है, जीवन में कभी निराशावादी नहीं बनना, अपने जीवन में उत्साह के साथ आगे बढ़ते रहें, अनुशासन की दौड़ में बंध कर मान मर्यादा का उल्लंघन ना करें। इसके बाद श्री नरेश जी दिल्ली ने गुरु भक्ति का भजन प्रस्तुत किया।
तदनंतर श्री शुद्धात्म प्रकाश जी भारिल्ल ने कहा कि आचार्य श्री से हम लोग बहुत पहले से परिचित हैं, जितने भी लोग यहां पर बैठे हैं क्या सभी की शक्ल एक सी है, क्या अक्ल एक सी है? नहीं, आखिर क्यों। एक बच्चा फुटपाथ पर पैदा हुआ, एक अच्छे घर में पैदा हुआ, आखिर क्यों? एक कुत्ता गाड़ी में घूम रहा है, एक पिता गाड़ी में बैठने को कह रहे हैं फिर भी नहीं बैठाया, आखिर क्यों? यह सब विभिनताए संसार में नजर आ रही है, इन सब का कारण अपने अपने कर्म का फल है, कर्म बंधते कैसे हैं। सामने वाले ने किसी के ऊपर पत्थर मारा पर सामने वाले को पत्थर नहीं लगा, मारने वाले ने तो कर्म का बंध कर लिया मारने के भाव से, पर सामने वाला पुण्य कर्म के कारण सुरक्षित रह गया।
मच्छर आपके शरीर पर बैठा तो आप उसे मार देते हो, आप स्वयं सोचो उसे मारने की आप को क्या सजा मिलेगी। आज शाकाहारी, शाकाहारी बने रहें, यही भावना है हमारी। दिगंबर मुनिराज जीवों की सुरक्षा इस पिच्छिका के माध्यम से करते हैं। प्रतिफल के भावों पर ध्यान दो, भावों को संभालो। पापबंध होगा तो प्रतिकूल फल मिलेंगा, पुण्यबंध होगा तो अनुकूल फल मिलेगा। इसलिए अच्छे कार्य करो ताकि अच्छा फल मिलेगा। आप सभा में बैठे हैं एक व्यक्ति सोच रहा है जल्दी बंद कर दें प्रवचन महाराज जी और एक सोच रहा है कितना अच्छा बोल रहे हैं, बोलते ही रहे थोड़ी देर और। एक व्यक्ति बुरी सोच से पाप कर्म का बंध करता है, एक व्यक्ति अच्छी सोच से अच्छे कर्म का बंध करता है। प्रतिपल अपने भावों का परीक्षण करो, यह हर जगह लिख दो इन भाव का फल क्या होगा तो फिर पल-पल आप अपने भावों की संभाल रखेंगे। तुम्हारे मां-पिता अंतिम क्षणों तक आपका हित चाहते हैं, अहित नहीं चाहते। मां-पिता कई बच्चों का पालन-पोषण कर लेते हैं, पर कई बेटे मिलकर मां-पिता की साल-संभाल नहीं कर पाते हैं। आज घरों में छोटा बेटा, छोटी बहू सोचती है हम ही क्यों करें मां-पिता की सेवा, और भी तो हैं। ऐसी सोच से तुम कर्मों का बंध कर लेते हो, अपना सुख तो अपने में है। यह पंक्तियां बोलते हुए कहा कि सुख कहीं बाहर नहीं है, सुख तो अपने अंदर हैं। तुम तो स्वयं अनंत सुख के स्वामी हो। इस प्रकार ‘इन भावों का फल क्या होगा’? विषय पर बहुत सुंदर प्रस्तुति की।
राष्ट्रीय जैन युवा सम्मेलन में अजमेर, केकड़ी, मुरैना, आगरा, तिजारा, जयपुर, कोटा, देवली, इंदौर, भोपाल, मुजफ्फरनगर, भीलवाड़ा आदि अनेक स्थानों के युवक हजारों की तादाद में आए। इसके पश्चात अनेक स्थानों से आए हुए युवा मंडल के अध्यक्ष-मंत्रियों आदि को सम्मानित किया गया।