अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक सम्मेलन
धर्म और विज्ञान के बीच आवश्यक है एक सुदृढ़ अंतर-संबंध – अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक सम्मेलन का प्रत्तिबद्ध चिंतन
1008 भगवान चंद्रप्रभ अतिशय क्षेत्र तिजारा में राष्ट्रसंत सराकोद्धारक आचार्यश्री 108 ज्ञानसागर जी महाराज के पावन सान्निध्य में द्वि-दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक सम्मेलन में विभिन्न शोधपत्रों कीदि0 03 नवंबर को हुई प्रस्तुति के माध्यम से, जैन धर्म की वैज्ञानिक अवधारणाओं पर एक गंभीर चिंतन प्रारम्भ हुआ| इस अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में इंगलैंड, अमेरिका, जर्मनी, कोरिया, चेकेस्लोवाकिया, थाईलैंड, आस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रीया आदि देशों के एक दर्जन से अधिक विद्वान भाग ले रहे हैं| भारत के लगभग पच्चीस विद्वान भी, इनके अतिरिक्त भाग ले रहे हैं| इस सम्मेलन के मुख्य अतिथि थे दिल्ली विधान सभा के अध्यक्ष, माननीय श्री राम निवास जी गोयल| श्री गोयल ने अपने प्रबोधन में भारतीय संस्कृति में व्याप्त धार्मिक आस्थाओं की वैज्ञानिकताओं की प्रशस्त परम्पराओं का उल्लेख करते हुए बताया कि इस देश के धार्मिक-सांस्कृतिक और सामाजिक चिंतन में वैज्ञानिक तत्वों का बहुत सुंदर सा समावेशन हुआ है| यह समावेशन ही भारतीयता का प्राण है| जैन धर्म के विविध तत्वों में वैज्ञानिक अवबोध, संस्कारों की यात्रा पूरी कर, संस्कृति का निर्माण कर चुका है| भोजन की शुद्धता, पानी छानने की अनिवार्यता सूक्ष्म जीवों से जहां एक ओर रक्षा के भाव रखते हैं, तो वहीं दूसरी ओर, उन सूक्ष्म जीवों की कोमलता के साथ रक्षा का भी भाव सहजता में सुनिश्चित हो जाता है| सम्मेलन में, विषय वस्तु-संबंधित समेकित चिंतन प्रस्तुत करने हेतु, हिंदुस्तान एयरोनौटिक्स लिमिटेड, बैंगुलुरु के पूर्व अध्यक्ष तथा प्रबंध निदेशक श्री टी0 सुवर्णा राजू ने भारतीय वैज्ञानिक विरासत के विविध आयामों की चर्चा करते हुए, तकनीकों के आयात से बचने का आह्वान किया और प्रबोधित किया कि देश के विकास के लिए स्वदेशी तकनीकों के विकास एवं उनके प्रयोग को बढ़ाए जाने की आवश्यकता है| उन्होने एयरोनौटिक्स के क्षेत्र में तकनीकी नवोन्मेष के विविध अनुभवों से जन-सामान्य को परिचित कराया| दूसरे मुख्य वक्ता के रूप में भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद के पूर्व अध्यक्ष एवं विश्रुत दार्शनिक प्रोफेसर एस0 आर0 भट्ट ने जैन दर्शन की कतिपय अवधारणाओं की चर्चा की एवं उल्लेख किया कि अनेकांत के दर्शन में वैज्ञानिक सोच परिलक्षित होती है| उन्होने प्रकृति के रहस्यों के उदघाटन में तथा प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा हेतु जैन दर्शन की मूल अवधारणाओं के सम्यक उपयोग के विषय में अपना चिंतन प्रस्तुत किया|
इस अवसर पर पधारे देश एवं विदेश को विभिन्न वैज्ञानिकों का पूज्य आचार्यश्री की सन्निधि में सम्मान किया गया| पूज्य प्रवर ने अपने उद्बोधन में भारतीय संस्कृति को परिपोषित कर रही जैन संस्कृति के विविध वैज्ञानिक अवधारणाओं की गहरी चर्चा की| लोक की रचना, भूगोल के रहस्य, जीवों की सूक्ष्म रचना, कर्म सिद्धान्त की गहराई आदि विभिन्न विषयों की प्रस्तुति में जैनाचार्यों की गहरी वैज्ञानिक दृष्टि की आचार्यश्री ने विवेचना की|
अतिशय क्षेत्र तिजारा की प्रबंध समिति के श्री अंकुश जैन, श्री विजय जैन, अंकित जी आगरा,श्री मनीष जैन,प्रेमसागर जैन ,नरेंद्र जैन ,निखिल जैन आदि इस समारोह में उपस्थित थे| इसके अतिरिक्त स्थानीय महाविद्यालयों के शिक्षक एवं छात्रों ने भी बड़ी संख्या में भाग लिया| दो दिनों तक चलने वाले इस सम्मेलन में कुल तीन तकनीकी सत्र आयोजित किए जाएँगे| समापन समारोह 4 नवंबर के अपराहन में सम्पन्न होगा|
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