भक्ष्य व अभक्ष्य विवेक – जैन आहार विज्ञान
भक्ष्य का अर्थ खाने योग्य और अभक्ष्य का अर्थ नहीं खाने योग्य। जो वस्तुएं विशेष जीव हिंसा में कारण हैं, स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, प्रमाद वर्धक एवं बुद्धि विकार में कारण होती हैं, ऐसी वस्तुएं अभक्ष्य कहलाती हैं। अभक्ष्य पदार्थ भी मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं प्रथम तो जिनका सेवन करना, सर्वथा निषेध है, दूसरे वे, जो एक समय सीमा, परिस्थिती तक तो खाने योग्य होते है उसके बाद नहीं ।
राजकुमार महावीर को वैराग्य जातिस्मरण के कारण हुआ। राजकुमार महावीर चन्द्रप्रभा पालकी में बैठकर कुण्डलपुर के वन-षण्डवन में दीक्षा लेने गए एवं शालवृक्ष के नीचे दीक्षा ली| मुनि महावीर को प्रथम आहार कूलग्राम के राजा कूल ने दूध की खीर का दिया ।
अभक्ष्य बाईस भी माने गये हैं
ओला घोर बड़ा निशि भोजन, बहुबीजा बैंगन संधान ।
बड़, पीपर, ऊमर, कठऊमर, पाकर फल या होय अजान ।
कंदमूल माटी विष आमिष, मधु माखन अरू मदिरापान।
फल अतितुच्छ तुषार चलित रस, ये बाईस अभक्ष्य बखान ।
मद्य (मदिरा, शराब) – अनेक फल-फूलादि को सड़ाकर शराब बनाई जाती है। इसमें अनेकों जीव उत्पन्न हो जाते हैं, इसे पीने वाला व्यक्ति बुद्धि और विवेक खो देता है।
मांस – जीव/प्राणियों की हत्या करके ही मांस प्राप्त होता है। स्वयं मरे हुए पशु के मांस में भी अनन्त निगोदिया जीव होते हैं, मांस को अग्नि से गर्म करने पर भी वह जीव रहित नहीं होता उसमें तजाति(उसी पशु की जाति वाले) निगोदिया जीव निरन्तर उत्पन्न होते रहते हैं| अत: मांसभक्षण करने वाले को नियम रूप से हिंसा का पाप लगता है।
मधु (शहद) – मधुमक्खियों की उगाल है। मांस के समान ही शहद कभी भी निगोदिया जीवों से रहित नहीं होता है। कई बार शहद प्राप्ति के लिए छत्ते को तोड़ दिया जाता है जिसके सैकड़ों मक्खियाँ मर जाती हैं।एक बूंद शहद के सेवन से सात गाँव को जलाने से भी अधिक पाप लगता है।
नवनीत (मक्खन) – काम, मद (अभिमान, नशा) और हिंसा उत्पन्न करने वाला है। बहुत से उसी वर्ण, जाति के जीवों का उत्पत्ति होने से अन्तर्मुहूर्त पश्चात नवनीत खाने योग्य नहीं है। नवनीत को निकालते ही तुरन्त गर्म कर लेने पर प्राप्त घी खाने योग्य हैं।
पाँच उदम्बर फल पाँच उदम्बर फल – बड़, पीपल, ऊमर, पाकर, कलूमर के फल, त्रस जीवों की उत्पति स्थान ही है। अत: अभक्ष्य है। सूख जाने पर भी विशेष रागादि रूप भाव हिंसा का कारण होने से अभक्ष्य है। अनजान फल जिसका नाम, स्वाद आदि न पता हो वह भी अभक्ष्य है।
द्विदल अभक्ष्य है – जिसके दो भाग हो ऐसे दाल आदि को दही में मिलाने पर, तथा (मुख में उत्पन्न) लार के संयोग से असंख्य त्रस जीव राशि पैदा हो जाती है। इससे त्रस जीवों के भक्षण का दोष लगता है। इसका सर्वथा त्याग करना चाहिए जैसे दही बड़ा, दही की बड़ी, दही पापड़ आदि। कच्चे दूध से बनी दही व छाछ तथा गुड़ मिला दही व छाछ भी अभक्ष्य हैं।
चुना व संदिग्ध अन्न अभक्ष्य है – चुने हुए अन्न में अनेक त्रस जीव होते हैं यदि सावधान होकर नेत्रों के द्वारा शोधा भी जाए तो भी उसमें से सब त्रस जीवों का निकल जाना असम्भव है। अत: सैकड़ों बार शोधा हुआ भी घुना अन्न अभक्ष्य है। तथा जिस पदार्थ में त्रस जीवों के रहने का संदेह हो ऐसा अन्न भी त्यागने योग्य है।
कंदमूल (गडन्त) अभक्ष्य है – कंद अर्थात् सूरण, मूली, गाजर, आलू, प्याज, लहसुन, गीली हल्दी आदि जमीन के भीतर पैदा होने वाली गड़न्त वस्तुएं साधारण वनस्पति, अनन्तकाय होने से अभक्ष्य है अन्य वनस्पतियों की अपेक्षा इनमें अधिक हिंसा होती है। अत: जीवदया पालने वालों को इनका सेवन नहीं करना चाहिए।
अभक्ष्य 5 प्रकार के होते हैं। त्रसघातकारक, प्रमादवर्धक, बहुघातकारक, अनिष्टकारक और अनुपसेव्य।
- त्रसघात कारक – जिस पदार्थ के खाने से त्रसजीवों का घात हो। जैसे-बड़, पीपल, पाकर, ऊमर, कटूमर,माँस, मधु, अमर्यादित भोजन और घुना अन्न आदि।
- प्रमादवर्धक – जिस पदार्थ के खाने-पीने से प्रमाद और आलस्य आता है। जैसे-शराब, गाँजा, भाँग पदार्थ। नोट- बीयर आदि भी शराब हैं।
- बहुघातकारक – जिसमें फल तो अल्प हो और बहुत त्रसजीवों का घात हो। जैसे-गीला अदरक,मूली, नीम के फूल, केवड़े के फूल, मक्खन एवं समस्त जमीकंद आदि।
- अनिष्टकारक – जो आपकी प्रकृति-विरुद्ध हैं। जैसे-खाँसी में दही का सेवन, बुखार में घी का सेवन, हृदय रोग में घी और तेल का सेवन, डायबिटीज में शक्कर का सेवन, मोतीझिरा बुखार में अन्न का सेवन और ब्लडप्रेशर बढ़ने पर नमक का सेवन करना आदि अनिष्टकारक हैं।
- अनुपसेव्य – जो सजन पुरुषों के सेवन करने योग्य नहीं हैं। जैसे-गोमूत्र, ऊँटनी का दूध, शंकचूर्ण, पान का उगाल, लार, मूत्र, पुरीष और खकार आदि।
- द्रव्य – जैसे-किसी ने प्रासुक भोजन बनाया और उस भोजन को कुत्ता, बिल्ली आदि ने जूठा कर दिया तो वह अभक्ष्य हो गया या उसमें कोई अशुद्ध पदार्थ गिर गया।
- क्षेत्र – अपवित्र स्थान पर बैठकर भोजन करना क्षेत्र अभक्ष्य है।
- काल – जो पदार्थ स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण से चलायमान हो गए हैं, मर्यादा के बाद वह पदार्थ अभक्ष्य है। लीस्टर देश में 8 घंटे के बाद मिठाई फेंक देते हैं।
- भाव – भोजन करते समय यह भोज्य वस्तु माँस, रुधिर और मदिरा के सदृश है, ऐसा स्मरण होते ही वह भोजन भाव अभक्ष्य है। डिश के नाम नॉनवेज पर आधारित होने से भी वो अभक्ष्य है जैसे पनीर टिक्का, वेज कोरमा, कोफ्ता आदि
वर्तमान में विवाह और जन्मदिन आदि की पार्टियों में दाल बाफले, तंदूरी, छोले-भटूरे आदि चलते हैं, इनमें दही मिलाया जाता है, अत: द्विदल है |
बाजार में मिलने वाले पदार्थों में बहुत से पदार्थ अभक्ष्य हैं। जैसे-
- बन्द डिब्बों की आइसक्रीम -कस्टर्ड में अंडे का प्रयोग,
- जिलेटिन -Bone marrow (अस्थि मज्जा से बनती है )
- चाँदी का वर्क – जानवरों की आंत में पीट पीट कर बनाया जाता है,
- अजीनोमोटो -रसायन तथा त्रस जीवो के घात से,
- साबूदाना -जमीकंद से व उसको सड़ाने से त्रस जीवों का घात
- नींबू का सत्व (टाटरी) -रसायन से जिसमे त्रस जीवों का घात और
- मैगी, पिज्जा, बर्गर, ब्रेड, नूडल्स, सैंडविच आदि- स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक होने के साथ ही MSG जैसे हानिकारक रसायन का प्रयोग, मोजोरिल्ला चीज़ मक्खन का रूप होने से अभक्ष्य, ब्रेड आदि बनाने में अंडे का प्रयोग, खमीर उठाकर बनाने से अभक्ष्य ।
- बिस्किट, चिप्स, दूध में मिलाने वाले पाउडर – E नंबर देखकर ही लें। चिप्स आलू से बनने से अभक्ष्य ।
- विभिन्न फलाहारी नमकीन – आलू व साबूदाना मिक्स करने से अभक्ष्य
- रेस्टोरेंट में नान – सॉफ्ट करने के लिए अंडे का प्रयोग, बटर के नाम पर लगाए जाने वाले animal fat (जानवर की चर्बी )
- बड़ी कॉफी शॉप, रेस्टोरेंट में मिलनी वाली refine sugar, sugar cubes – शक़्कर को ज्यादा सफेद बनाने के लिए bone charcol का उपयोग होता है ।
आजकल कुछ खाद्य तेल में ह्रदय के लिए अच्छा बनाने के लिए चर्बी का प्रयोग, दवाइयों में मांसाहार, विदेशों में मिलने वाले कुछ डिब्बाबंद फ्रूट जूस व नमकीन पिस्टे के पैकेट तक में अंडे मिलाये जाने लगे हैं। अतः किसी भी पैक्ड खाद्य को लेने से पहले पूरी जानकारी पढ़ें। विदेश में अतिरिक्त सतर्कता बरतें।