ध्यान की महिमा
दिनांक 6 अगस्त 2018 को हरी पर्वत आगरा में स्थित श्री शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर में धर्म सभा को संबोधित करते हुए आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराजने अपनी पीयूष वाणी द्वारा कहा कि सिर्फ जैन दर्शन में ही ध्यान की चर्चा नहीं है सभी दर्शनकारों ने ध्यान की चर्चा की है। ध्यान वह प्रक्रिया है जिससे चंचल मन स्थिर हो जाता है, ध्यान वह प्रक्रिया है जिससे अंतरयात्रा प्रारंभ हो जाती है बाहर से उपयोग हटकर अंदर की तरफ हो जाता है।
ध्यान का अर्थ चित्त की एकाग्रता है मानव मन बड़ा चंचल है पल भर में कभी दुकान पर, कभी घर पर, कभी मार्केट में, कभी मित्रों के पास, कभी रसोईघर में तो कभी सिनेमा हॉल में चला जाता है। इस चलायमान मन को भटकते मन को स्थिर करने की प्रक्रिया ध्यान है।
ध्यान के भेद बताते हुए आचार्य उमास्वामी महाराज ने तत्वार्थ सूत्र में आर्त, रौद्र, धर्म, शुक्ल ध्यान की चर्चा की है।
संक्लेश्ता के क्षणों में, दुख के क्षणों में, जो चित्त की स्थिरता होती है वह आर्त-रौद्र रुप खोटे ध्यान है। इष्ट के वियोग होने पर उन्हें प्राप्त करने के लिए मन का कलुषित होना वह इष्ट वियोग नामक आर्तध्यान है। जिसे आप नहीं चाहते ऐसे पदार्थों के संयोग होने पर उससे दूर होने के लिए जो रुधन होता है वह अनिष्टसंयोग नामक ध्यान है। शरीर में किसी भी पीड़ा के होने पर उससे छुटकारा पाने हेतु आकुलित होना पीड़ा चिंतन ध्यान है।
आचार्य श्री ने कहा कि आप आर्त, रौद्र ध्यान को छोड़कर धर्म ध्यान का सहारा लेकर शुक्ल ध्यान की साधना करनी चाहिए, तभी यह संसारी प्राणी दुर्गति से छुटकारा प्राप्त कर सुगति प्राप्त कर सकता है।
नर जीवन मिला है कुछ अच्छे कार्य करने के लिए परिवारों को टूटने से कैसे बचाया जा सकता है इस प्रश्न का उत्तर देते हुए आचार्यश्री ने कहा कि आज परिवारों के टूटने के जो कारण है उन्हें समझना होगा आज परिवारों में सहनशक्ति, विनम्रता का अभाव होता जा रहा है। परस्पर में सामंजस्य का नहीं होना, परस्पर एक दूसरे के प्रति शंकाएं होना, स्वार्थ भावना, विश्वासघात की प्रवर्ती, भेदभाव की भावना आदि अनेक कारण से परिवार बिखर रहे हैं।
आज किसी को किसी की बात सहन नहीं होती और जब एक दूसरे की बात सहन नहीं होती तो बिखराव की स्थिति प्रारंभ हो जाती है। परस्पर एक दूसरे के विचारों में भिन्नता होना यह भी परिवार को दूर करने में माध्यम बनता है। हम किसी से कम नहीं यह भावना, अहंकार आदि परिवारों को बिखरने में कारण बन रहा है। आज अधिकांश व्यक्तियों की सोच नेगेटिव हो गई है। यह सोच भी परिवारों के टूटने के कारण है। परिवारों को टूटने से अगर बचाना है तो सर्वप्रथम सभी को सहिष्णुता का विकास करना होगा, नम्रता को स्थान देना होगा। छल कपट विश्वासघात से दूर रहना होगा। सभी के प्रति समभाव रखना होगा, सभी एक साथ बैठकर चर्चा परिचर्चा करें, पॉजिटिव सोच बनानी होगी, एक दूसरे के प्रति सम्मान रखें इन सभी कारणों को जानकर आप अपने जीवन में परिवर्तन लायें तभी आप परिवारों को संगठित कर सकते हैं।
धर्म सभा का शुभारंभ मंगलाचरण से हुआ श्री सुमेर जी पंड्या आदि ने पाद प्रक्षालन किया, धर्म सभा का संचालन महामंत्री श्री राजकुमार जी राजू ने किया।