देवली में मंगल पदार्पण
जहाजपुर में स्थित भूगर्भ से निकली श्री मुनिसुव्रतनाथ भगवान की प्रतिमा को जिस नवनिर्मित जहाज के आकार के भव्य मंदिर में विराजमान करना है जो आर्यिका श्री स्वस्तिभूषण माता जी की प्रेरणा से बना, जिसका पंचकल्याणक आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज के पावन सानिध्य में 31 जनवरी से 7 फरवरी तक होना है। ऐसे पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के निमित्त से ही आचार्य श्री का कई वर्षों के बाद आगमन हुआ है। सभी देवली निवासी श्रद्धालुओं ने आचार्य श्री का भाव भिना स्वागत किया।
देवली में पूर्व विराजित आचार्य श्री विनीत सागर जी महाराज ने ससंघ आचार्य श्री की भव्य अगवानी की। दो आचार्यों के मंगल-मिलन का दृश्य देखकर सभी प्रसन्न हुए। विशाल जुलूस के साथ आचार्य श्री का ससंघ मंगल पदार्पण हुआ। श्री महावीर मंदिर में आचार्य श्री जैसे ही पहुंचे। सभी का उत्साह द्विगुणित हुआ। विशाल जुलूस धर्मसभा रूप में परिवर्तित हुआ। समाज के श्रद्धालुओं ने श्रीफल समर्पित कर देवली में अधिक से अधिक समय देने हेतु विनय की।
ब्र. अनीता दीदी ने आचार्य श्री के विशाल व्यक्तित्व का परिचय दिया। साथ ही देवली वालों को 26 जनवरी को होने वाले युवा सम्मेलन तथा पंचकल्याणक में पहुंचने हेतु प्रेरित किया। तदनंतर आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज ने अपनी पियूष वाणी द्वारा कहा कि जीवन को सफल/सार्थक करने के लिए योग की साधना जरूरी है, विषय भोग से ऊपर उठना जरूरी है। सम्यगदर्शन की सरल व्याख्या बताते हुए आचार्य श्री ने कहा कि जो सासु-बहू में मां-बेटी की भावना रखने की प्रेरणा देता है, जो घरों को स्वर्ग बनाने में माध्यम बनता है। साथ ही राजस्थान के गौरव की जानकारी देते हुए आचार्य श्री ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम में जैन समाज का महत्वपूर्ण योगदान रहा है, कई व्यक्तियों ने अपना बलिदान कर देशभक्ति का परिचय दिया है।
साथ ही आचार्य श्री ने कहा कि 20 वर्ष पूर्व जब देवली आया था, तब सभी के अंदर बहुत उत्साह था, आज भी जब 20 वर्षों के पश्चात यहां आया हूं, उसी तरह का उत्साह देख रहा हूं। आप सभी का उत्साह आगे भी इसी तरह से रहे, यही शुभभावना है।
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