देश राष्ट्र परिवार का गौरव बढ़ाएं
आगरा हरी पर्वत पर स्थित श्री शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर के श्री शांतिसागर सभागार में धर्म सभा को संबोधित करते हुए आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराजने अपनी पीयूष वाणी द्वारा कहा कि आध्यात्मिक जगत में जीने वाला व्यक्ति आचार्य श्री कुंदकुंद स्वामी द्वारा रचित समयसार ग्रंथ का जहां स्वाध्याय करते हैं वहीं स्वयं के जीवन को भी समयसार ग्रंथ बनाने का प्रयास करते हैं|
वैज्ञानिक जिस प्रकार प्रयोगशाला में प्रयोग किया करते हैं दिगंबर साधु जीवन रूपी प्रयोगशाला में प्रयोग किया करते हैं| इस संसार रूपी रंगमंच पर जीव और अजीव दो हीरो हैं इन्हीं दो का खेल है| जीव का स्वाद जानना देखना है, अजीव से ही संसार की वृद्धि होती है| यह दोनों द्रव्य जब अपने अपने स्वभाव में आ जाते हैं तो जीव सिद्धशिला का वासी हो जाता है| तीन प्रकार के जीवो की चर्चा करते हुए कहा कि एक जीव वह होते हैं, जो अहर्निश बुरे कार्यों के द्वारा जीवन को धूमिल करते हैं| उनको आगम में अशुभोपयोगी जीव कहा है|दूसरे तरह के व्यक्ति वह हैं, जो सतत अच्छे कार्यों के द्वारा जीवन का उद्यान करते हैं जिन्ह शुभोपयोगी जीव कहा है| तीसरे तरह के व्यक्ति वह हैं जो पुण्य-पाप प्राप्त रूप रणनीति से ऊपर उठकर परमात्मा अवस्था को प्राप्त कर चुके हैं जिन्हें शुद्धोपयोग जीव कहा है|
सर्वप्रथम व्यक्ति को बुरे कार्यों को/ पाप कार्यों को छोड़ना चाहिए| अच्छे कार्यों के द्वारा जीवन के नक्शे को अच्छा बनाना चाहिए| प्रभु ने जीवन में यही पुरुषार्थ किया है, अशुभ- शुभ धारा से रहित शुद्ध दशा का अनुभव किया है| प्रभु के पास जाकर प्रभु जैसे बनने का संकल्प करना| प्रभु के पास जाकर प्रभु का होकर रहने की साधना करो, तो प्रभु के पास जाकर आनंद की आप अनुभूति करोगे| वह आनंद कहीं बाहर नहीं अपने अंदर है|
इसी के साथ आचार्य श्री ने कहा कि व्यस्तता भरी जिंदगी में आज आपने, अपने आपको मोबाइल Facebook आदि के द्वारा और भी अधिक व्यस्त कर लिया है। अब तो किसी को किसी की जरूरत नहीं है। बस आप और आपका मोबाइल हो, क्या होता जा रहा है आज के व्यक्ति को सब कुछ जानते हुए भी अपने आप को सुरक्षित नहीं रख पा रहा है। व्यक्ति यह जानता है कि मोबाइल आदि का अतिप्रयोग हानिकारक है, फिर भी उसी में लगा रहता है|समाज ने आप को विशाल- विशाल मंदिर दिए हैं संस्कार दिए हैं। अतः आपकी जिम्मेदारी है कि आप उसकी सुरक्षा करें। आप स्वयं मंदिर जाएं, अपने बच्चों को मंदिर साथ ले जाएं। जिस देश में आप रहते हैं उसकी शान बढ़ाएं; अगर शान नहीं बढ़ा सकते तो कम से कम उसे धूमिल ना करें। अगर आप गौरव नहीं बढ़ा सकते तो उसके गौरव को घटाएं नहीं, आप सभी से जो भी श्री सम्मेदशिखरजी की यात्रा में जाए वह अपनी आचारसंहिता बनाकर जाए:
जब तक यात्रा में जाए ब्रह्मचर्य का पालन करें
होटल का भोजन ना करें
रात को अन्न की वस्तु ना खाएं
यात्रा में नशीले पदार्थों का प्रयोग ना करें
यात्रा का उद्देश्य मनोरंजन नहीं हो पिकनिक का रूप नहीं हो
यात्रा का उद्देश्य भोग का नही योग का होना चाहिए। पावन तीर्थ पर जाकर ऐसे कोई कार्य ना करें जिस से आत्मा पतित हो। प्रवचन से पूर्व धर्मसभा का शुभारंभ श्रीमती उषा जी के मंगलाचरण से हुआ, चित्र अनावरण श्री दिलीप जी राजकुमार जी आदि ने किया। मंच संचालन श्री मनोज जैन ने किया।
प्रवचन के पश्चात 1500 व्यक्तियों को श्री सम्मेद शिखरजी की यात्रा ले जाने वालों की पूरी टीम ने पूज्य श्री के श्री चरणों में अर्घ समर्पित कर आशीर्वाद प्राप्त किया