हाल ही मे “टाइम्स ऑफ़ इंडिया” पत्र समूह के आध्यात्मिक प्रकाशन “The Speaking Tree” की सम्पादिका सुश्री सोनल श्रीवास्तव द्वारा विश्वव्यापी कोरोना वायरस महामारी के विषय मे परम पूज्य आचार्य ज्ञानसागर जी मुनिराज एवं विदुषी ब्रह्मचारिणी बहन अनीता दीदी से विस्तृत चर्चा की गई। प्रस्तुत है टाइम्स ऑफ़ इंडिया के मुंबई संस्करण मे 5 अप्रैल 2020 को प्रकाशित आलेख का हिंदी रूपांतर :
कोरोना वायरस – प्राकृतिक आपदा या कर्मफल
आजकल सोशल मीडिया मे जोरशोर से प्रचार किया जा रहा है कि कोरोना की विश्वव्यापी महामारी मानवजाति द्वारा किये गए पाप कर्मो का ही प्रतिफल है।इस उपमहाद्वीप मे विद्यमान कर्मफल सिद्धांत मे विश्वास रखने वाली 3 प्रमुख विचारधाराओं मे जैन दर्शन ऐसी सुव्यस्थित एवं प्राकृतिक न्याय मे विश्वास रखने वाली विचारधारा है जिसमे कर्म सिद्धांत को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है।
राजस्थान के बारां नगर मे विराजित आचार्य ज्ञानसागर जी मुनिराज की संघस्थ ब्रह्मचारिणी अनीता दीदी ने कर्म सिद्धांत की विस्तार से व्याख्या करते हुए कहा कि हर व्यक्ति अपने किये गए कर्म का फल अवश्य भोगता है। सामूहिक रूप मे किये गए पापों का फल सामूहिक रूप से भुगतना पड़ता है जबकि व्यक्तिगत कर्म का फल उस व्यक्ति विशेष को प्राप्त होता है। निश्चित ही यह सामूहिक रूप मे हम सभी के द्वारा किये गए दुष्कर्मो का फल है,जो इस भीषण महामारी के रूप मे पूरी मानव जाति भुगत रही है।
विषय को आगे बढ़ाते हुए आचार्य ज्ञानसागर महाराज कहते हैं, “जैन दर्शन के अनुसार हमें यह भी ध्यान मे रखना होगा कि किस भावना या नीयत के साथ कोई कर्म किया गया है। ऋषियों मुनियों ने स्पष्ट कहा है कि एक ही कर्म का फल विभिन्न व्यक्तियों को उनकी कषायों की तीव्रता या मंदता के अनुसार अलग अलग कम या ज़्यादा प्राप्त होता है। जो मनुष्य अपने कुकृत्यों/पापों के लिए पश्चाताप करते हैं एवं तप के माध्यम से प्रायश्चित करते हुए प्रभु की आराधना भक्ति करते हैं तथा उनके बताये मार्ग पर चलते हैं, उनके पापों के फल के अनुभाग मे बहुत कमी आ सकती है।
जैन धर्म मे प्रतिपादित क्षमा धर्म पर प्रकाश डालते हुए आचार्य श्री कहते हैं की, “जाने या अनजाने मे हुई सभी भूलों/गलतियों/अपराधों के लिए हमें क्षमा याचना अवश्य करनी चाहिए। क्षमावाणी पर्व हमें अपनी गलतियों को सुधारने का अवसर प्रदान करता है। कोरोना महामारी की भीषण आपदा से बचने का उपाय बताते हुए आचार्य भगवन कहते हैं कि सभी देशवासियो को शासन प्रशासन के दिशानिर्देशों का पालन करते हुए अपने घरों मे ही रहना चाहिए और अपने हाथों को नियमित रूप से धोते रहना चाहिए। साथ ही सात्विक भोजन लेना चाहिए।
स्वच्छता का महत्व बताते हुए अनीता दीदी कहती हैं, “जैन परंपरा मे स्वच्छता पर बहुत जोर दिया गया है। अपने घर मे प्रवेश करने से पहले जूते चप्पल बाहर उतारना आवश्यक है। हाथ पैरों को दिन मे कई बार अच्छी तरह साबुन से धोना, विशेषकर भोजन से पूर्व अत्यावश्क है। जैन धर्म कि इन परम्पराओं का पालन आज की इस कोरोना महामारी के सन्दर्भ मे और भी अधिक प्रासंगिक हो जाता है।
आचार्य श्री के अनुसार अपने पाप कर्मो को नष्ट करने के लिए आत्मज्ञान होना अत्यंत आवश्यक है। “हमारा शरीर एक मोबाइल फ़ोन के समान है और आत्मा बैटरी, जिसके बिना यह शरीर रूपी फोन काम नहीं कर सकता।” आचार्य भगवन कहते हैं।
यदि हर व्यक्ति या स्थिति का अस्तित्व कर्म पर ही आधारित है तब क्या यह कोरोना वायरस ऐसी भीषण स्थिति पैदा करके स्वयं के लिए अशुभ कर्मो का संचय नहीं कर रहा, मेरे इस प्रश्न के उत्तर मे आचार्य ज्ञानसागर जी कहते हैं, “कोरोना वायरस निमित्त मात्र है जिसके माध्यम से हमारे स्वयं के पाप कर्मो का हिसाब किताब हो रहा है। अपनी बुद्धि एवं विवेक का प्रयोग करते हुए एवं अहंकार तथा कर्ताभाव का त्याग कर हमें शुभ कर्मो मे लीन रहना चाहिए और अशुभ कर्मो से बचना चाहिए। भगवान महावीर के सार्वभौमिक एवं सर्वकालीन सिद्धांत जीयो और जीने दो का हरदम स्मरण रखना चाहिए।”
हिंदी रूपांतर
जे.के जैन
कृष्णानगर दिल्ली