भोजन के साथ भजन भी जरुरी
आज दिनांक 12-04-2018 को ललितपुर क्षेत्रपाल जैन मंदिर में सराकोद्धारक आचार्य श्री ज्ञानसागर जी ने प्रातः काल धर्मसभा को अपनी पीयूष वाणी से संबोधित करते हुए कहा, जिस प्रकार शरीर को पुष्ट करने के किये प्रतिदिन भोजन की आवश्यक्ता है ठीक उसी प्रकार आत्मा को पुष्ट करने के लिए भजन जरुरी है। भोजन के प्रति जितनी आपकी रूचि रहती है, क्या उतनी रूचि भजन के प्रति भी रहती है, साथ ही कहा कि जीवन में कब किसके परिवर्तन हो जाये, पता नही। प्रभु की वाणी गुरुओं की वाणी सुनकर जिसके जीवन में परिवर्तन हो जाता है उनका प्रवचन सुनना सफल और सार्थक हो जाता है।
ह्रदय परिवर्तन के लिए मौन का अभ्यास जरुरी है। सुख शांति का सबसे अच्छा उपाय मौन की साधना करना है। जो व्यक्ति जितना अधिक बोलता है, उसकी उतनी ही अधिक शक्ति कम होती है। मौन का अभ्यास करने वाले आंतरिक शक्ति का उदघाटन करते हैं।
अगर पूर्ण रूप से आप मौन नही रह सकते तो कम से कम बोलें आवश्यकता पड़ने पर ही बोलें, हितकारी बोलें, तौल कर बोलें, दो के बीच में ना बोलें, मीठे वचनों का प्रयोग करें। आपकी वाणी वीणा का काम करे, बाण का नही इसका ध्यान रखना चाहिये। कहा भी है :-
वाणी ऐसी बोलिये मन का आपा खोय औरन को शीतल करे, आपुह शीतल होये।
ह्रदय परिवर्तन के लिए आवश्यक है समता का विकास करना। सुख दुख, लाभ हानि, निंदा प्रशंशा, शत्रु मित्र, कांच कनक आदि सभी से समता रखना यह धर्म सिखलाता है।
आप तो सुख के पल में, लाभ के समय, प्रशंशा के समय में तो फूल जाते हो पर दुःख के समय में, हानि के समय में, निंदा के समय में दुखी हो जाते हो।* जबकि मेरी भावना में आप पढ़ते है कि होकर सुख में मगन न फूलें दुःख में कभी ना खबरावें।
जीवन शैली को बदलो तभी जीवन अच्छे से व्यतीत हो सकता है