अष्टान्हिका पर्व
अष्टान्हिका पर्व का संबंध 8वाँ द्वीप नंदीश्वर द्वीप से हैं। वहां कुल 52 पर्वत है, एक एक पर्वत के शिखर पर एक एक अकृत्रिम जिनमंदिर और एक मंदिर में 108 जिनबिम्ब, इस प्रकार 52×108=5616 जिन बिम्ब विराजमान हैं। प्रतिमाओं का अवगाहन 500 धनुष है, सभी जिन बिम्ब पद्मासन अवस्था में है, इनकी प्रभा करोड़ों सूर्य के तेज़ और कांति को लज्जित करती हैं और इनके मुख व नख लाल वर्ण तथा केश व नेत्र पंक्ति श्याम वर्ण के हैं। प्रतिमाओं के दर्शन मात्र से ही समयक्तव की प्राप्ति हो जाती हैं।
चारो निकायो के इन्द्र और सम्यक दृष्टि देव ही नन्दीश्वर द्वीप जाते है, कदाचित मिथ्यादृष्टि देव भी इनके साथ चला जाये तो वह भी सम्यक्त्व ग्रहण कर लेता है। मनुष्य की गमन शक्ति ढाई द्वीप तक है जिसका प्रमाण 45 लाख योजन है, इससे आगे मनुष्य नहीं जा सकते। अष्टान्हिका पर्व १ साल मे तीन बार- कार्तिक,फाल्गुन और आषाढ के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से पूर्णिमा तक आता है। इस बार फाल्गुन की अष्टान्हिका 22 फरवरी से 1 मार्च तक है। नंदीश्वर द्वीप मंडल विधान,सिद्ध चक्र मंडल विधान अष्टान्हिका पर्व में किये जाते हैं।
अष्टान्हिका पर्व के दिनों में विशेष रूप से व्रत, नियम संयम का पालन करना चाहिए तथा अपनी शक्ति के अनुसार एकासन, उपवास करते हुए आत्मा का चिंतन करना चाहिए। जिस प्रकार देवता नंदीश्वर द्वीप जाकर अखण्ड पूजा करते हैं, हमें भी तीर्थ यात्रा पर जाना चाहिए। अष्टान्हिका पर्व में मैनासुन्दरी ने भव्य सिद्धचक्र मण्डल विधान का आयोजन किया, जिसके प्रभाव से राजा श्रीपाल और 700 वीरों का कोढ़ ठीक हुआ।
नंदीश्वर द्वीप अर्घ: यह अरघ कियो निज हेत, तुमको अरपतु हूँ,
‘ध्यानत’ कीज्यो शिवखेत, भूमि समरपतु हूँ ।
नंदीश्वर श्रीजिन धाम, बावन पूज करूं,
वसु दिन प्रतिमा अभिराम, आनंद भाव धरूँ।।
नंदीश्वर द्वीप महान, चारों दिशि सोहे,
बावन जिन मंदिर जान, सुर नर मन मोहे।