आल इंडिया जैन एडवोकेट्स फोरम, मालपुरा

 

संसार में कुछ व्यक्ति अन्य लोगों के उपकार के लिए ही जन्म लेते हैं, ऐसे ही हमारे आचार्य श्री ज्ञानसागर जी। साधु- संत मुनि तो कई हुए हैं, जिन्होंने आत्म कल्याण के लिए कठोर साधना की है तथा परमत्व को भी प्राप्त हुए हैं, लेकिन पर-कल्याण की बात कुछ ही लोग करते हैं। मुनिश्री ने जब से विहार करना प्रारंभ किया है, तब से ही जन कल्याण एवं जैन कल्याण के लिए अपने प्रवचनों के माध्यम से लोगों को प्रेरित करना प्रारंभ किया। जैन समाज के बुद्धिजीवियों, विद्वानों, डॉक्टर, एडवोकेट, CA, इंजीनियर, वैज्ञानिक, उद्योगपति आदि संगठित होकर समाज हित में कार्य करें। आचार्य श्री ने प्रेरणा दी, उनको संगठन बनाने के लिए प्रेरित किया। प्रारंभ से ही आचार्य श्री ने अलग-अलग व्यवसाइयों की समय-समय पर गोष्ठियां व सम्मेलन कराये।

आचार्य श्री द्वारा समय-समय पर कराई गई जैन एडवोकेट की गोष्ठियों व सम्मेलनों का ही परिणाम है कि राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात आदि कई प्रांतों में जैन अभिभाषकों के प्रांतीय संगठन गठित हो पाए हैं।

 

संगठन का उद्भव

राष्ट्रसंत परम पूज्य 108 आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज स्वयं तो ज्ञान के सागर हैं वह ज्ञानी- ज्ञानवीरों को एक सूत्र में बांधने को प्रयासरत हैं। आचार्यश्री ने जैन समाज के विद्वानों, अध्यापकों, जनप्रतिनिधियों और शासकीय सेवा के प्रमुख अधिकारियों को संगठन रुप में जोड़ने का विचार किया था जब वर्ष 2000 में आचार्य श्री का प्रवास राजस्थान के टोंक जिले के मालपुरा नगर में था, तो उन्होंने अभिभाषकों का संगठन बनाने की प्रेरणा दी। जिस कड़ी में मालपुरा, जयपुर, पदमपुरा, चूलगिरी आदि में अभिभाषकों की मीटिंग आयोजित की गई, लेकिन आचार्यश्री का प्रवास फिर आगरा, मेरठ, बड़ागांव व दिल्ली की ओर हो गया। मेरठ में आचार्यश्री ने अभिभाषकों का सम्मेलन कराया और मध्यप्रदेश में प्रवास होने पर ग्वालियर, सागर, दमोह, सोनागिरजी आदि में अभिभाषकों की मीटिंग कराई। मध्यप्रदेश में न्यायाधिपति अभयकुमार जी गोहिल की प्रेरणा व प्रयास से संगठन के गठन के संबंध में प्रयास शुरू हुए जिन्होंने वर्ष 2000 में बेंगलुरु के चातुर्मास काल में कर्नाटक के संगठन के रूप में मूर्त रूप ले लिया। बीच की अवधि में जब आचार्यश्री का प्रवास केरल, तमिलनाडु और पांडिचेरी क्षेत्र में हुआ तो वहां भी इस संगठन के संबंध में चर्चा होती रही।

आचार्य श्री ने 9 अक्टूबर 2010 के स्वर्णिम दिवस पर ‘ऑल इंडिया जैन एडवोकेट कांफ्रेंस 2010’ का बेंगलुरु के कर्नाटक जैन भवन में आयोजन कराया, यह दिवस महत्वपूर्ण साबित हुआ। इस दिन कर्नाटक राज्य के एडवोकेट्स समिति गठन की घोषणा हुई, साथ ही तमिलनाडु, केरल व पांडिचेरी के अभिभाषको के संगठन का भी गठन हुआ और सबसे महत्वपूर्ण यह रहा कि उस दिन ही ‘अखिल भारतीय संगठन’ के स्थापना की घोषणा और प्रमुख कानूनविद माननीय ‘महामहिम श्री हंसराजजी भारद्वाज, राज्यपाल कर्नाटक’ द्वारा की गई। पूरे भारत से आए सभी जैन अभिभावकों ने एकमत होकर न्यायाधिपति माननीय श्री अभयकुमार जी गोहिल को इस संगठन का ‘चीफ वेटन’ बनाया और आचार्य श्री के आदेश से अखिल भारतीय कार्यकारिणी की एक मत से घोषणा की गई।

इस कांफ्रेंस में बहुत ही महत्वपूर्ण विषयों पर विचार प्रकट हुए तथा जैनों को अल्पसंख्यक का दर्जा मिले इस पर विशद चर्चा हुई। संगठन को प्रभावी बनाने पर विचार व्यक्त हुए। कर्नाटक के जैनसमाज, चातुर्मास समिति, अभिभाषक गण व न्यायाधीशगण ने इसमें विशेष उत्साह दर्शाया। इस अवसर पर कर्नाटक, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के अभिभाषकों की डायरेक्टरी का विमोचन कराया गया। इस संगठन का केंद्रीय कार्यालय दिल्ली में रखा जाना तय किया गया। द्वितीय ऑल इंडिया जैन एडवोकेट कांफ्रेंस 2011 मुंबई में जो 2 अक्टूबर 2011 को आयोजित की गई थी उसमें संगठन को मूर्त रूप मिला।

 

जैन अभिभाषक संगठन का उद्देश्य व उपयोगिता-

इस संगठन को स्थापित करने का उद्देश्य बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह संगठन जैन अभिभाषकों के स्वयं के हित के लिए, जैन समाज की सुरक्षा के लिए तथा जैनधर्म-साधु-मंदिर-तीर्थ-संस्कृति और साहित्य के संरक्षण के लिए कार्य करेगा।

एक पहलू- प्रथमतः इस संगठन का लक्ष्य तहसील स्तर से सुप्रीम कोर्ट के न्यायालयों के अभिभाषकों को हर जिले व राज्य में संगठित कर जोड़ना है तथा एक-दूसरे से परिचित कराना है। इसके लिए डायरेक्टरी तैयार की जाएगी, अभिभाषकों के लिए वांछित सूचनाएं भी इसमें होगी और समय-समय पर जिलास्तर पर, राज्यस्तर पर मीटिंग आयोजित होगी। अभिभाषक के रूप में जीविका शुरू करने वाले सदस्य की बात है उसके लिए तो इस संगठन से काफी लाभ होगा। इसके अतिरिक्त जो वरिष्ठ जैन अभिभाषक विभिन्न बीमा कंपनियों, बैंकों शासन के विभिन्न विभागों के शीर्ष लीगल पदों पर जैसे इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड, खनन विभाग, श्रम विभाग, लोकल बॉडी या अन्य संकाओं से जुड़े या पदस्थापित है उनसे संगठन के माध्यम से संपर्क कर विभिन्न स्तर पर जहां भी पेनल एडवोकेट की नियुक्तियां होती है या अन्य नियुक्तियां होती है उन्हें भी सहायता प्राप्त कर नियुक्तियां कराई जा सकेगी।

दूसरा पहलू- जैन समाज के सदस्यों की संख्या पूरे भारत में बहुत ही अल्प है, अल्पसंख्यक के लिए कानूनी लड़ाई लड़ना अपेक्षित है। इससे शिक्षाक्षेत्र या अन्य क्षेत्रों में वरीयता व सुरक्षा मिलेगी। वैवाहिक समस्याओं का विवाद बिना न्यायालय तक पहुंचे ही हो पाएगा। मध्यस्थता एवं आपसी जुड़ाव केंद्र स्थापित करके इन समस्याओं का समाधान किया जाएगा। नई दिल्ली में अंसारी रोड पर ‘जैन मीडिएशन, आर्बिट्रेशन एंड री-कंसीलेशन सेंटर की स्थापना मार्च 2012 में माननीय न्यायाधिपति श्री अभय कुमार गोहिल एवं वरिष्ठ अधिवक्ता श्री भारतभूषण जैन प्रयासों से कर दी गई है। इस प्रकार की अन्य योजनाएं भी समाज की सुरक्षा के लिए इस संगठन द्वारा चलाई जा सकेगी।

तीसरा पहलू- इस संगठन के माध्यम से जैनधर्म, जैनसाधु, जैन आयतन, जैनतीर्थ, जैनसंस्कृति व जैन साहित्य के संरक्षण के लिए जहां-तहां भी जब-जब भी कानूनी मदद की आवश्यकता होगी, इस संगठन से जुड़े पदाधिकारी कानूनी सहायता उपलब्ध कराएंगे। वर्तमान में जो माननीय उच्चतम न्यायालय के एक निर्णय द्वारा जैन धर्म को हिंदू धर्म का ही एक पंथ होना बताया है, इस संबंध में उच्चतम न्यायालय में उस निर्णय के विरुद्ध अपील कर जैन धर्म जो एक स्वतंत्र धर्म है, पुनः तय कराना इस संगठन का प्रथम व सर्वोपरि लक्ष्य है। पूर्व में न्यायालयों द्वारा स्पष्टत: जैन धर्म को स्वतंत्र धर्म होने के संबंध में कई महत्वपूर्ण निर्णय पारित किए हैं। पर दुर्भाग्य से वर्ष 2005 में बाल पाटिल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (AIR2005/SC/3172) जो उच्चतम न्यायालय में उक्त निर्णय पारित कर दिया है, उसे निरस्त करना बहुत ही आवश्यक हो गया है, वरना जैन धर्म हिंदू धर्म का ही सदैव एक पंथ ही माना जाएगा।

यह संगठन जैन समाज के विभिन्न तबकों के लोगों में भी तालमेल बैठा कर सुरक्षा व संरक्षण दिलाने को प्रयासरत रहेगा। इस अखिल भारतीय संगठन को ‘यूनाइटेड जैन लॉयर्स एसोसिएशन’ (उजला UJLA) का नाम दिया गया है। अब इस संगठन के माध्यम से सभी प्रमुख जैन नगरों में मीडिएशन सेंटर खोले जाने का प्रयास किया जा रहा है। जयपुर, ग्वालियर, भोपाल में केंद्र की स्थापना की तैयारियां हो चुकी है। अब इस संगठन के माध्यम से पूरे भारत में जैन मंदिर, जैन संस्थाओं व ट्रस्टों को जैन समाज की सार्वजनिक संपत्तियों से संबंधित सभी स्वामित्व के दस्तावेज का नगर के स्तर पर जिले के स्तर पर, राज्य के स्तर पर व राष्ट्र के स्तर पर एकत्रित कर संरक्षण किया जाए, इस हेतु टाइटल बैंक की स्थापना जिला राज्य व राष्ट्र के स्तर पर किए जाने की रूपरेखा तैयार की जा रही है। और समस्त जैन समाज के प्रतिष्ठित गणमान्य वह सभी संस्थाओं के पदाधिकारियों से आह्वान किया जा रहा है कि इस कार्य में पूरा सहयोग करें ताकि भविष्य में कभी भी संपत्ति को लेकर जब मामले न्यायालयों में जाए तो संपत्तियों से संबंधित सभी दस्तावेज उपलब्ध हो सके और हम हमारी संपत्ति को बचा सके। अभी तीर्थों के संबंध में चल रहे विवादों में पूरे दस्तावेज उपलब्ध ना होने के कारण हमें काफी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। आचार्य श्री के आशीर्वाद व प्रेरणा से यह संगठन अपने उद्देश्य में सफल होगा ऐसी कामना है।

सुरेंद्र मोहन जैन, एडवोकेट
चीफ कोऑर्डिनेटर
ऑल इंडिया जैन एडवोकेट फोरम
मालपुरा राजस्थान