जैन पर्व : अक्षय तृतीया
अक्षय तृतीया पर्व वैशाख शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है ।
इस दिन आहार देने की परंपरा प्रारम्भ हुई थी । प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव जी जो छह माह की साधना के बाद प्रथम आहार हेतु निकले थे, परंतु किसी को आहारदान की क्रिया का ज्ञान न होने से उन्हें 7 माह तक आहार नहीं मिला।
हस्तिनापुर में जब ऋषभदेव जी आहार चर्या हेतु निकले, तब वहां के राजा श्रेयांस को पूर्वभव का स्मरण होने से आहार विधि का ज्ञान हुआ। तब उन्होंने विधिपूर्वक ऋषभदेव जी को आहार दान दिया, और यह परंपरा प्रारम्भ हुई। प्रथम आहार इक्षु रस (गन्ने का रस) से हुआ|
उस दिन राजा श्रेयांस के यहाँ भोजन अक्षीण (कभी ख़त्म न होने वाला) हो गया था| अतः इस दिन को अक्षय तृतीया के नाम से जाना गया| आहार देने पर राजा श्रेयांस के महल में पंचाश्चर्य प्रकट हुए
- रत्नवृष्टि
- पुष्पवृष्टि
- दुंदुभि बाजों का बजना
- शीतल सुगंधित वायु का चलना
- अहो दानं, अहो दानं, अहो दानं – चारों और गूंज होना।