आचार्य श्री कुन्दकुन्द स्वामी
लगभग 2100 वर्ष पहले आचार्य कुंदकुंद स्वामी का जन्म आंध्र प्रदेश के अनन्तपुर जिले के कोण्डकुंदु (कुन्दकुन्दपुरम) (कुरुमलई) में माघ शुक्ल पंचमी को ईसवी से 108 वर्ष पूर्व हुआ था। कुन्दकुन्द स्वामी ने मात्र 11 वर्ष की आयु में मुनि दीक्षा ली। उनका मुनि दीक्षा का नाम पद्मनन्दि था। बोधपाहुड ग्रंथ के अनुसार वो आचार्य भद्रबाहु के शिष्य थे।
33 वर्ष तक मुनि और लगभग 53 साल आचार्य पद पर रहे। उनके अन्य नाम: वक्रग्रीव आचार्य, एलाचार्य, गृद्धपिच्छाचार्य व पद्मनन्दि हैं। उनकी प्रमुख उपलब्ध कृतियां समयसार, प्रवचनसार, नियमसार, पंचास्तिकाय, वारसाणुवेक्खा, अष्टपाहुड, प्राकृत दशभक्ति हैं, इससे अन्य उन्होंने पंचपरमागम एवं 84 पाहुडों की भी रचना की जो वर्तमान में हमें उपलब्ध नहीं हैं।
एलाचार्य – ऐसा कहते है आचार्य कुंदकुंद विदेह गए थे, तो वहां के मुनष्यों के आकार के सामने एला अर्थात् ईलायची, वहां के अनुसार ईलायची के आकार के थे, तो एलाचार्य नाम पड़ा|
गृद्ध पिच्छाचार्य -उनकी पिच्छी गिर गयी थी तो उन्होंने गिद्ध के पंखों से पिच्छी बनाई थी।