आहार दान विधि
साधु श्रावक से धर्म साधन के लिए, क्षुधा का उपशमन करने के लिए तथा मोक्ष की यात्रा के साधन हेतु आहार लेते हैं। शुद्ध मन वचन काय से आहार देने पर ही उसका फल मिलता है। आठ वर्ष की आयु के बाद बालक बालिका, युवा वृद्ध स्त्री पुरुष जैन श्रावक आहार दे सकता है।
आहार विधि-
1. पड़गाहन विधि- हे स्वामिन (मुनि, ऐलक, क्षुल्लक)/हे माताजी (आर्यिका, क्षुल्लिका)! नमोस्तु-नमोस्तु-नमोस्तु(मुनि), वन्दामि-वन्दामि-वन्दामि (आर्यिका), इच्छामि-इच्छामि-इच्छामि (ऐलक, क्षुल्लक) अत्र, तिष्ठ-तिष्ठ-तिष्ठ, आहार जल शुद्ध है।
2. पड़गाहन के बाद शुद्धि- विधि मिलने के बाद, जब आपके सामने खड़े हो जाएं तब तीन प्रदक्षिणा देना चाहिए उसके बाद नमोस्तु महाराज/वन्दामि माताजी/इच्छामि महाराज! मनशुद्धि, वचनशुद्धि, कायशुद्धि, आहार जल शुद्ध है, गृह प्रवेश कीजिये। ऐसा कहना चाहिए।
भोजनशाला के द्वार पर गरम पानी से अपने पैर अच्छी तरह धोकर साधु को भोजनशाला में प्रवेश करने के लिए प्रार्थना करें। पुनः हे महाराज जी! नमोस्तु, उच्चासन पर विराजमान होइए, ऐसा कहें। आसन पर विराजमान होने के बाद थाली में महाराज जी के पैर गरम पानी से धोएं।
3. पूजा विधि- आह्वानन – है मुनिराज अत्र अवतर अवतर अवतर, अत्र तिष्ठ तिष्ठ तिष्ठ, अत्र मम सन्निहितो भव, वषट सन्निधिकरण” ऐसा कहकर पुष्प क्षेपण करें। फिर अष्ट द्रव्यों के अर्घ बोलकर मुनिराज को नमस्कार करें।
4. आहार दान के लिए शुद्धि- चौके में बनाई हुई समस्त वस्तुओं को एक थाली में थोड़ी थोड़ी लगाकर मुनिराज के सामने लावें और एक -एक वस्तु का नाम बतावें, फिर मुनिराज जिसे निकलवायें उसे थाली में से अलग कर लेना चाहिए। फिर निवेदन करें – मुद्रा छोड़कर अंजुली बांधकर भोजन ग्रहण कीजिये। फिर नमोस्तु करें। फिर महाराज के हाथ धुलायें। महाराज जी के खड़े होकर भक्ति बोलने के बाद पहले पानी दें। फिर आहार कराएं।
5. सावधानियां- साधु की प्रकृति पर भी ध्यान देतव हुए आहार कराएं। जैसे उम्र के हिसाब से पाच्य, बीमारी के हिसाब से दवा, आहार का क्रम जैसे खट्टी चीज़ के तुरंत बाद दूध नहीं। इत्यादि
अंतराय- केश (बाल), मरा हुआ जीव, सचित्त बीज, नाखून, चर्म, रक्त, मांस आदि के आहार में आने पर और रास्ते में मांस शव देखने पर, जीव मरने पर, मांस भक्षी पशु चौके में आ जाने पर, स्त्री के छूने पर, बरतन गिरने पर, मनुष्य को चक्कर आकर गिरने पर, छोड़ी हुई चीज एवं अभक्ष्य भक्षण होने पर, अग्निदाह होने पर, करुण रोने की आवाज़ सुनने पर, दूसरों की मार काट आदि कठोर शब्द सुनने पर तथा और भी अनेक कारणों से भोजन में अंतराय हो जाता है।
आहार दान का फल- आहार दान से आत्म विशुद्धि बडती है,पाप का नाश होता है पुण्य बडता है अन्त मे मोक्ष की प्राप्ति आहार दान का फल है
- आटा दलिया मैदा व मसाले वर्षा शीत ग्रीष्म ऋतू में क्रमशः 3, 5, 7 दिन तक
- मिठाई व उससे बने सामान 1 दिन
- बूरा, बतासा क्रमशः वर्षा शीत ग्रीष्म ऋतू में 6, 15, 30 दिन तक
- पापड़ पूरी पराँठा हलुवा – 12 घंटो तक
- तले पदार्थ जैसे सेव बूंदी आचार मुरब्बा 24 घंटे तक
- खिचड़ी दलिया सब्ज़ी रोटी 6 घंटे
- घी तेल 1 साल
- नमक (सेंधापिसा) -48 मिनट
- प्रसूत पशु का दूध शुद्धि – भेड़, बकरी (08 दिन), भैंस (15 दिन), गाय (10 दिन )
चौका का अर्थ होता है चार, शुद्धि का अर्थ शुद्धता अर्थात भोजन बंनाने का एवं करने का स्वच्छ स्थान। इन चार शुद्धि का ध्यान रखना चाहिए – द्रव्य शुद्धि , क्षेत्र शुद्धि, काल शुद्धि, भाव शुद्धि । इन सभी के चार चार भेड़ हैं, इस प्रकार सब मिलाकर सोलह (16) भेद हो जाते हैं, जिसे श्रावक गण सोला कहते हैं ।
- द्रव्य शुद्धि : अन्न शुद्धि, जल शुद्धि, अग्नि शुद्धि, कर्ता शुद्धि
- क्षेत्र शुद्धि : प्रकाश शुद्धि, वायु शुद्धि, स्थान शुद्धि, दुर्गन्धता से रहित
- काल शुद्धि : ग्रहण काल शुद्धि, शोक काल शुद्धि, रात्रि काल शुद्धि, प्रभावना काल शुद्धि
- भाव शुद्धि : वात्सल्य भाव, करुणा भाव, विनय भाव, दान भाव