बूंदी जिला जेल में आचार्य श्री के प्रवचन
दिनांक 24.02.2020 बूंदी जिला जेल में कैदियों को संबोधित करते हुए आचार्य शांतिसागर छाणी महाराज परंपरा के षष्टपट्टाचार्य सराकोद्धारक, आचार्यश्री 108 ज्ञानसागर जी महाराज ने अपनी पीयूष वाणी द्वारा कहा कि इस धरा पर अनेक ऋषि-महर्षि हुए हैं, जिन्होंने अपने जीवन में चर्चा नहीं आचरण को स्थान दिया है। वह चिंता को नहीं, चिंतन को स्थान देते हैं। ऐसे ऋषि-महर्षि अपने कल्याण के साथ दूसरों का भी कल्याण करते हैं।
आप सभी पेट के खातिर नहीं पेटी भरने के खातिर यहां आए हैं। क्योंकि पेट के लिए दो रोटी चाहिए पर आज व्यक्ति को पेट की चिंता नहीं होती पेटी भरने की चिंता होती है, उस पेट को भरने के लिए ही कभी-कभी व्यक्ति अपनी लकीर से हट जाता है। अन्याय, अनीति, अत्याचार, बेईमानी का सहारा लेकर ऐसे अपराध करता है, जिस कारण जहां वह पाप का संचार करता है, वहीं जेल की हवा भी खाता है। आप सभी ने कहीं न कहीं मान मर्यादा का उल्लंघन किया होगा, तभी आप इस जेल में हैं। आप सभी राम, श्रीकृष्ण, हनुमान एवं महावीर तीर्थंकर जैसे महापुरुषों का नाम लेते है पर काम ऐसे कर जाते हो जिससे नाम बदनाम हो जाता है।
श्रीकृष्ण- सुदामा के जीवन का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि श्रीकृष्ण के जीवन में सुदामा के प्रति कितना प्रेम था उनके मन में गरीब-अमीर का भेद नहीं था, उनके अंदर अहंकार नहीं था, तभी तो उन्होंने सुदामा के प्रति मैत्री का भाव जाग्रत किया, सच्चा मित्र तो वही है जो अच्छे मार्गदर्शक बनकर दूसरों को भी सही मार्ग पर चलाता है।
इसी के साथ आचार्य श्री ने कहा कि हर व्यक्ति को अपनी-अपनी करनी का फल मिलता है, अच्छे कर्म करने वालों को अच्छा फल मिलता है, बुरे कर्म करने वालों को बुरा फल मिलता है। यदि आपको अच्छा फल चाहिए तो अच्छे कर्म करते रहो। जो कुछ हुआ है उसको भूल कर अच्छे कार्य करने का संकल्प लें। आज से आप यही संकल्प लेकर जाएं, कि जो भी आवेश के अंदर आपने जो कार्य किए हैं, उन्हें दोबारा से न करें, ताकि शेष जीवन अच्छे से गुजर सके।
आपके मां-पिता आपके नहीं रहने पर कितने दुखी होते हैं, वही जान सकते हैं। कितने अरमान होते हैं मां-पिता और परिवार के लोगों के, पर आपने उन सभी के अरमानों की ओर ध्यान न देकर आवेश में कुछ ऐसे कार्य किए, जिस कारण आप यहां बैठे हैं। जब त्योहार, उत्सव के क्षण आते हैं, तब मां-पिता और परिवार के लोगों के अंदर क्या गुजरती है, यह वही जानते हैं। कैसा लगता है उस बहिन को रक्षाबंधन के दिन, जिसका एक ही भाई रहता है, उसकी आंखें सजल रहती हैं, वह सोचती है कैसा खोटा भाग्य है मेरा, जो आज भाई की कलाई पर राखी नहीं बांध पाई हूं। उस पत्नी को कैसा लगता होगा जिसने अपना पूरा जीवन समर्पित किया है। उन बच्चों को कैसा लगता होगा जो अपने पिताजी को नहीं देख पाते, बच्चे मां से पूछते हैं कि मां मेरे पिता जी क्यों चले गए जेल में, क्या उत्तर देती होगी वह मां, कैसे समझाती होगी वह मां अपने लाड़ले को।
बीती ताहि बिसार के, आगे की सुध ले की सूक्ति को बोलते हुए आचार्य श्री ने कहा कि भविष्य उज्जवल बने ऐसे कार्य करना। जीवन में जितने अधिक आप नशीले पदार्थों का, मांसाहार का उपयोग करते हैं उतना ही अधिक आप अनेक प्रकार के रोगों से ग्रसित हो जाते हैं। प्रकृति ने सभी को शाकाहारी बनाकर भेजा है, मांसाहारी बनाकर नहीं। दोनों के शरीर की रचना अलग-अलग है, इसलिए तन-मन को स्वस्थ रखने के लिए शाकाहारी भोजन करें। विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा यह तथ्य सामने आए हैं कि जो प्रकृति से हटकर जीवन जीते हैं, वह लगभग 160 प्रकार के रोगों से ग्रसित हो जाते हैं।
आचार्य श्री ने सभी को व्यसन मुक्त जीवन जीने की प्रेरणा देते हुए कहा कि आप सभी जब तक जेल में हैं तब तक जेलर साहब आदि अधिकारियों को सम्मान दें, यह सभी भी आप सभी को मां-पिता जैसा प्रेम-वात्सल्य दें। आपस में सभी प्रेम-वात्सल्य के साथ रहते हुए अपना अधिक से अधिक समय प्रभु-भक्ति एवं सत्साहित्य के पठन-पाठन में दें।
अंत में दिगम्बरत्व की चर्चा करते हुए कहा कि प्रवृत्ति प्रदत्त भेष है। विषय-वासना से जो अतीत हो जाते हैं, वहीं दिगम्बरत्व की साधना करते हैं। हर व्यक्ति जब इस संसार में आता है तो नग्न आता है और जब जाता है तो कुछ भी साथ नहीं ले जाता है। पूज्य श्री के प्रवचन से पूर्व श्री महावीर प्रसाद (जैन-कैदी) ने मंगलाचरण किया।
मंच संचालन ब्र. अनीता दीदी एवं श्री ओमप्रकाश जी बडज्याला (अध्यक्ष) ने किया। जेल प्रवेश से पूर्व जेल उपअधीक्षक ने पाद-प्रक्षालन किये। श्री लोकोज्जवल सिंह (उप कार्यवाहक जेल उपाधीक्षक, श्री विनोद जी वाज़ा ए. डी. जे, श्री कमलेश कुमार शर्मा एडवोकेट आदि ने आचार्य श्री के श्री चरणों में श्रीफल समर्पित किए।
ब्र. अनीता दीदी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए आचार्य श्री के प्रभाव व्यक्तित्व एवं कृतित्व की चर्चा की, साथ ही दिगंबर साधु की चर्या बताते हुए कहा कि आचार्य श्री अब तक 93 जेलों में जाकर कैदियों को संबोधित कर चुके हैं, आज 94 वीं जेल में आचार्य श्री का उद्बोधन आप सभी के बीच हो रहा है। आप सभी बहुत सौभाग्यशाली है कि बहती हुई ज्ञानगंगा आप सभी के बीच आई है, इस ज्ञान गंगा में आप सभी अपने जीवन रूपी मैली चादर को साफ-सुथरा करें, उनके सदुपदेश सुनकर अपने जीवन की बुराइयों की विदाई करें।
अब तक हम लोगों ने देखा है चाहे दिल्ली की तिहाड़ जेल हो, चाहे मुंबई की आर्थर जेल, तलोजा जेल हो, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक आदि प्रांतों की जेल हो, सभी स्थानों के कैदियों के अंदर प्रवचन सुनकर परिवर्तन हुआ। प्रवचन के पश्चात हर जगह कैदियों ने आचार्य श्री के समक्ष अंडे, मांस, मछली एवं नशीले पदार्थों को नहीं खाने का संकल्प लिया। आप सभी भी आज कुछ ना कुछ संकल्प अवश्य ले, तभी इनके आने का आप सभी लाभ उठा सकते हैं।
पूज्य श्री के प्रवचन के पश्चात जेल उपाधीक्षक), ए.डी.जे. साहब ने भी अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आपका बहुत ही प्रेरणास्पद वक्तव्य रहा। आपके आगमन से यह प्रांगण पवित्र हो गया, हर एक महीने में इस तरह का कार्यक्रम होना चाहिए। आपने जो कहा है उसको हम सभी अपने जीवन में अपनाने का प्रयास करेंगे।
तदनंतर अनेक कैदियों ने अंडे, मांस,मछली और नशीले पदार्थों का तथा बुरे कार्य न करने का संकल्प लिया। आचार्य श्री की अधिकारियों ने आरती की। श्री ओमप्रकाश जी बड़जात्या (अध्यक्ष) ने हार्दिक आभार व्यक्त किया। अंत में सभी कैदियों को फल वितरित किए गए।